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________________ 1. अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय - जिनेश्वर भगवान ने परम्परा से चन्द्र, सूर्य आदि की अनिधन और अनादि प्रवाहरूप पर्यायों को विषय करने वाले नय को अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय कहा है। 272 पुद्गल द्रव्य के अनादि - नित्य पर्यायों को ग्रहण करनेवाला नय अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय है।273 जिसका आदि नहीं होता, उसे अनादि कहा जाता है तथा जो सदा बना रहता है, उसे नित्य कहा जाता है। पुद्गल द्रव्य के अनन्त पर्यायों में जो अनादि-नित्य पर्यायें हैं, उनको ही अपना विषय बनानेवाला नय अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय है, जैसे मेरूपर्वत | 274 पुद्गल द्रव्य में चय - अपचय निरन्तर चलता रहता है। कोई भी पुद्गल अधिक से अधिक असंख्यातकाल में तो अवस्थान्तर को प्राप्त करता ही है । मेरूपर्वत भी पुद्गलद्रव्य की ही एक पर्याय विशेष होने से बदलता रहता है । उसमें भी कुछ पुद्गलों का व्यय तो कुछ पुद्गलों का आगमन निरन्तर चलता रहता है। इस प्रक्रिया के मध्य भी मेरूपर्वत का संस्थान तो वही है । स्थान, वर्ण, परिमाण आदि ज्यों का त्यों रहने से मेरूपर्वत अनादि नित्य पर्वत है । 139 निरन्तर बदलती पर्यायें क्षणिक होने से छद्मस्थ दृष्टि में एक समान प्रतीत होती है| परन्तु वस्तुतः वे एक समान नहीं होती हैं। पर्यायों का प्रवाह सतत् गतिशील रहता है। इस प्रकार मेरूपर्वत भी प्रवाह की अपेक्षा से ही अनादि-नित्य के रूप में पहचाना जाता है। अतः रत्नप्रभादि पृथ्वी शाश्वत जिन प्रतिमाएं आदि जो कुछ भी शाश्वत् है उनको अपना विषय बनाने वाला नय अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय है । 275 272 अक्किट्टिमा अणिहणा ससिसूराइय पज्जयागाही 273 अनादि नित्य-पर्यायार्थिको यथा पुद्गल पर्यायो नित्यः मेवदिः 274 पर्यायार्थिक षड़भेदस्तत्राद्या 275 जिम पुद्गलो मेरू प्रमुख, प्रवाह थी Jain Education International नयचक्र, गा. 199 आलापपद्धति, सू. 58 द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो. 6 / 2 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 6/1 का ब् For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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