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पर्यायार्थिक नय -
ग्रन्थकार महोपाध्याय यशोविजयजी ने दिगम्बर परंपरानुसार पर्यायार्थिक नय के छह भेदों का वर्णन अपने ग्रन्थ 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' की छठी ढाल में विस्तार से किया है।
पर्याय ही जिसका प्रयोजन है, वह पर्यायार्थिक नय है। दूसरे शब्दों में पर्यायार्थिकनय का विषय पर्याय है।269 वस्तु उत्पत्ति, विनाश और ध्रुवता से युक्त होने से त्रयात्मक है। पर्यायार्थिकनय वस्तु के उत्पाद एवं विनाशरूप पर्यायों को प्रधानरूप से कथन करके उसके ध्रुवता के कथन को गौण कर देता है।270
'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' में पर्यायार्थिकनय को भेदग्राही बताया है। वस्तु के विशेष पक्षों को उनके साधक लिंग (हेतु) से सिद्ध करनेवाला नय पर्यायार्थिक नय है। जिसमें विशेष या भेदमूलक समस्त दृष्टियों का समावेश हो जाता है, वह पर्यायार्थिकनय है। 'द्रव्यगुणपर्यायनोरास में उल्लिखित पर्यायार्थिक नय के छह भेदों के नाम में तथा आलापपद्धति और नयचक्र में वर्णित नामों में किंचित अन्तर भी है। यथा -
द्रव्यगुणपर्यायनोरास
नयचक्र | 1. | अनादि नित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय | अनादि नित्य पर्यायार्थिक नय | 2. सादि नित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय सादि नित्य पर्यायार्थिक नय | 3. | अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय
अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिक नय नित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय | अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय
| नित्य शुद्ध (कर्मोपाधि रहित) पर्यायार्थिक नय कर्मोपाधि निरपेक्ष अनित्य शुद्ध पर्यायार्थिकनय | 6. | अनित्य अशुद्ध (कर्मोपाधि सहित) पर्यायार्थिकनय | कर्मोपाधि सापेक्ष अनित्य अशुद्ध पर्यायार्थिक नय
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268 पर्याया एवार्थः प्रयोजनमस्येति
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.... आलापपद्धति, सू. 191
आला. 269 दव्वत्थिएसु दवं पज्जायं पज्जयत्थिएविसयं ....... .... नयचक्र, गा. 188 270 पज्जय गउण किच्चा दव्वपि ......
..................................... वही, गा. 189 271 मुख्यवृत्तिं सवि लेखवई पर्यायारथ भेदइ रे .......................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा.5/3
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