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मिट्टी से खेलता है।250 संपूर्ण द्रव्य का गुण - पर्यायों में अन्वय या सह-अस्तित्व है । जब व्यक्ति द्रव्यस्वरूप को जानता है तब द्रव्यार्थ के आदेश से उस द्रव्य के साथ जितने गुण और पर्याय अनुगत है उनको भी जानता है। जैसे- सामान्य की प्रत्यास्ति से किसी एक का ज्ञान होने पर भी उस जाति के सभी व्यक्तियों का ज्ञान होता है। 251
8. स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिक नय :
स्वचतुष्टय अर्थात् स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल, स्वभाव की अपेक्षा से द्रव्य के अस्तित्व को ग्रहण करने वाला नय स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिक नय है । 252 जो स्व द्रव्य, स्वक्षेत्र, स्वकाल और स्वभाव में रहनेवाले द्रव्य को अपना विषय बनाता है, वह स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिक नय है । 253 द्रव्यानुयोगतर्कणा 254 में भी इसी प्रकार की व्याख्या दी गई है ।
प्रत्येक घटादि पदार्थ स्वद्रव्यादि की अपेक्षा से सत् है । स्वयं द्रव्य स्वद्रव्य है, उस स्वद्रव्य के जो अखण्ड प्रदेश हैं, वही उसका स्वक्षेत्र है । प्रत्येक द्रव्य में रहने वाले गुण, उसका स्वभाव है, क्योंकि काल का मतलब है, समय, प्रवाह । गुण भी प्रवाही होते हैं।255 अतः वे स्वकाल है और स्वभाव तो वस्तु का पर्यायरूप स्वभाव ही
है ।
यशोविजयजी ने स्वद्रव्यादि के ग्राहक को द्रव्यार्थिकनय का आठवां प्रकार बताया है। जैसे— पदार्थ स्वचतुष्टय से सत् है । घटादि पदार्थ स्वद्रव्य, स्वक्षेत्र,
250 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, भाग - 1 विवेचन, अभयशेखरसूरि, पृ. 203
251 जिम सामान्य प्रत्यास्ति
252 स्वद्रव्यादिग्राहक द्रव्यार्थिको
253 सदत्वादि चक्के सतं दव्वं
254 स्वद्रव्यादि संग्राही
255 नयचक्र -
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पं. कैलाशचंद्र शास्त्री, पृ. 108
. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 5 / 16 का टब्बा
कार्तिकेयानुप्रेक्षा की संस्कृत छाया, पृ. 270
नयचक्र, गा. 197
द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो. 5/17
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