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द्रव्य और गुण परस्पर अभिन्न है। द्रव्य गुणमय है और गुण द्रव्यमय है। गुणों से भिन्न न तो द्रव्य का अस्तित्व है और न ही द्रव्य से भिन्न गुणों का अस्तित्व सिद्ध होता है। द्रव्य गुणों का अखण्ड पिण्ड या समुदाय है।240 द्रव्य में से सभी गुणों को अलग कर दिया जाय तो द्रव्य के नाम पर कुछ भी नहीं बचेगा। द्रव्य का कथन गुणों के माध्यम से ही संभव है। जैसे- जो ज्ञानादि गुणों से युक्त है, वह आत्मद्रव्य है। गुणी आत्मद्रव्य और उसके ज्ञानादि गुणे में वस्तुतः भेद नहीं होने पर भी भेद कथन करना द्रव्यार्थिकनय की दृष्टि से अशुद्ध है तथा यह भेद कथन स्वाभाविक नहीं होने से काल्पनिक भी है, क्योंकि गुण, गुणी से भिन्न नहीं होता है।
इस प्रकार जो नय द्रव्य में गुण-गुणी के भेद की कल्पना करता है, वह भेद कल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय है।41 भेदकल्पना को ग्रहण करनेवाला नय द्रव्यार्थिकनय का छठा भेद है। जैसे आत्मा के ज्ञानादि शुद्ध गुणों की कल्पना करना भेद की ही कल्पना है।242
महोपाध्याय यशोविजयजी के अनुसार भेदकल्पना को ग्रहण करनेवाली द्रव्यार्थिक दृष्टि भेद कल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय है। जैसे आत्मा के ज्ञानादि गुण हैं। 243 आत्मा और गुण के बीच जो षष्ठि विभक्ति का प्रयोग है वह 'भिक्षु का पात्र' के समान भेद सम्बन्ध को ही दर्शाता है। परन्तु आत्मा और ज्ञान, भिक्षु और उसके पात्र के समान सर्वथा भिन्न नहीं है| आत्मा और ज्ञान में मुख्यवृत्ति से भेद नहीं होने से यह भेद कल्पना सापेक्ष द्रव्यार्थिकनय है।244 इस नय में भेदकल्पना की अपेक्षा जरूर है, परन्तु मुख्य रूप से तो यह अभेदग्राहक है। क्योंकि मुख्य रूप से
240 गुण-गुणी आदि अभेदस्वभात्वात् .........
वही, सूत्र 113 241 भए सादि संबंध गुणगुणियाइहिं कुणई जो दव्वे
... नयचक्र, गा. 195 242 भेदस्य कल्पनां ग्रहणन्नशुद्ध षष्ठ इष्यते .. ......... .............. . द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो. 5/5 243 गहत भेदनी कल्पना, छट्ठो तेह अशुद्धो .. ......................................... द्रव्य
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 5/15
गुपचाप 244 इहां षष्ठी विभक्ति भेद कहिइ छ।
.............. वही, टब्बा
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