________________
उत्पाद-व्यय से युक्त ग्रहण करके द्रव्य को उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक मानना, इस नय का विषय है।235 देवसेन आचार्य36 ने भी ऐसी ही परिभाषा दी है।
यशोविजयजी के अनुसार जो द्रव्यार्थिकनय उत्पत्ति-व्यय सापेक्ष पदार्थ को देखता है, वह उत्पाद-व्यय सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय है।237 यह नय द्रव्य को युगपद रूप से उत्पादव्ययध्रौव्यात्मक मानता है। जो समय सुवर्णमुकुटनाश का है वही समय सुवर्णघट की उत्पाद का है तथा वही समय सत्ता की विद्यमानता का है।238 विवक्षित समय में यह नय सुवर्णद्रव्य को मुकुटनाश रूप घट उत्पत्ति रूप तथा सुवर्णसत्तारूप मानता है।
यहाँ द्रव्यार्थिक नय के अशुद्धता के दो ही कारण हैं। प्रथम कारण है द्रव्य को अशुद्ध रूप से ग्रहण करना। जैसे जीव की कर्ममलयुक्त अवस्था को ग्रहण करना। दूसरा कारण है अखण्ड वस्तु में भेद की कल्पना करना। क्योंकि द्रव्यार्थिकनय की दृष्टि अभेदग्राही है।
उत्पाद-व्यय की अपेक्षा रखने से सापेक्ष तथा एक समय में द्रव्य के उत्पाद, व्यय और ध्रौव्य पक्ष को भेददृष्टि से ग्रहण करने से अशुद्ध है। इस प्रकार का नय उत्पाद-व्यय सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय होता है।
6. भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय :
जो नय भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्य को अपना विषय करता है वह भेदकल्पना सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय है।239 जैसे आत्मा के दर्शन, ज्ञानादि गुण रूप मानना।
235 उत्पादव्ययसापेक्षोऽशुद्ध द्रव्यार्थिकोऽग्रिम 236 उत्पादवयविमिस्सा सत्ता 237 ते अशुद्ध वली पाँचमो व्यय उत्पत्ति सापेखो रे. 238 जिम एक समयई .... 239 भेदकल्पना सापेक्ष : अशुद्ध द्रव्यार्थिको ....
.....
द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो. 5/4 नयचक्र, गा. 194 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 5/14
वही, टब्बा, ....... आलापपद्धति, सू. 52
..
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org