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कर्मोपाधि सापेक्ष द्रव्यार्थिक नय कर्म प्रकृतियों के उदय से अशुद्ध बने जीव को महत्त्व देकर उसे क्रोधी, मानी आदि कहता है।29 जो नय कर्मजन्य सभी भावों को जीव कहता है, वह कर्मोपाधि सापेक्ष द्रव्यार्थिक नय है।230
'द्रव्यगुणपर्यायनोरास में यशोविजयजी ने कर्मोपाधि से अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय को द्रव्यार्थिक नय का चतुर्थ भेद बताया है। जैसे – कर्मभावमय आत्मा को क्रोधात्मा कहना।31 जो द्रव्य जिस समय जिस रूप में परिणत होता है तब उसे उस रूप में (तन्मय) जानने वाली दृष्टि कर्मोपाधि सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। उदाहरण के लिए जब लोहखण्ड अग्निरूप में परिणत होता है, तब उसे अग्नि का गोला कहा जाता है। उसी प्रकार यह नय मोहनीय आदि कर्मोदय में तन्मय बनी आत्मा को क्रोधात्मा आदि कहता है।32 भगवतीसूत्र में आत्मा के आठ प्रकार बताये गये हैं -द्रव्यात्मा, कषायात्मा, योगात्मा, उपयोगात्मा, ज्ञानात्मा, दर्शनात्मा, चरित्रात्मा और वीर्यात्मा।33 इनमें से जो कषायात्मा और योगात्मा है, वे कर्मोपाधि सापेक्ष द्रव्यार्थिकनय का विषय हैं।
5. उत्पादव्यय सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय :
उत्पत्ति और नाश की अपेक्षा रखनेवाला नय उत्पाद व्यय सापेक्ष अशुद्ध द्रव्यार्थिकनय है।234 जैसे प्रतिसमय द्रव्य उत्पाद-व्यय-ध्रौव्यात्मक है। अतः सत्ता को
29 कर्मोपाधि शुद्धाख्यश्चतुर्थो भेद ईरितः ... 230 भावेसरायमादि सव्वे 23 अशुद्धकर्मोपाधि थी चोथो अहनो भेदो रे .... 232 जिम लोह अग्निपणई
द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो. 5/13 ..... नयचक्र, गा. 193
द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 5/13 द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 5/13 का
पण
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टब्बा 233 भगवतीसूत्र, 12/10/200 234 उत्पादव्यय सापेक्षो अशुद्ध द्रव्यार्थिको .
आलापपद्धति, सू. 51
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