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उपाध्याय यशोविजयजी ने भी अपनी प्रस्तुत कृति में उत्पाद-व्यय को गौण करके सत्ता को ग्रहण करने वाले नय को ही उत्पाद व्ययनिरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहा है।220 यह नय पिंड-स्थास-कोश-घट आदि पर्याय के रूप में होने वाले उत्पाद और विनाश की ओर दृष्टि न रखकर मात्र मृद्रव्य को ही देखता है। मृद्रव्य भी पुद्गलद्रव्य की एक अवस्था विशेष होने से, उसको भी गौण करके मात्र पुद्गलद्रव्य को ही ग्रहण करता है। जीव को मनुष्य रूप मे, पंचेन्द्रिय रूप मे, त्रसरूप में, संसारी रूप में देखने की अपेक्षा 'जीव' रूप में देखने वाली दृष्टि उत्पाद व्ययनिरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है। संक्षेप में द्रव्य का अविचलित अस्तित्व ही इस नय का विषय है।
उत्पाद-व्यय निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय में जो 'शुद्ध' विशेषण है, वह द्रव्यार्थिक नय का विशेषण है न कि द्रव्य का। क्योंकि यह नय अभेदग्राहक है।21
3. भेदकल्पना निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय :
भेद कल्पना निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिकनय वह है जो अपने गुण एवं पर्यायों से पृथक् द्रव्य को नहीं देखता है।22
यशोविजयजी ने प्रस्तुत ग्रन्थ की चतुर्थ ढाल में लिखा है कि प्रत्येक द्रव्य अपने गुण–पर्यायों से भिन्नाभिन्न होता है।23 इसमें भेदांश को गौण करके अभेदांश को मुख्यता देनेवाली दृष्टि भेद कल्पना निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।24 ज्ञानादि गुणों से एवं मनुष्यादि पर्यायों से अभिन्न जीव को तथा रूपादि से अभिन्न पुद्गल को मानना इस नय का विषय है।
220 उत्पाद व्यय गौणता, सत्ता मुख्य ज बीजइ ................. द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 5/4 221 द्रव्यगुणपर्यायनोरास भाग 1 - विवेचन, अभयशेखरसूरि , पृ. 193। 222 भेद कल्पना निरपेक्षः शुद्धोद्रव्यार्थिको
आलापपद्धति, सू. 49 223 भेदाभेदा तिहां पण कहतां, विजय जइन मत पावई ............... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 4/7 224 त्रिजो शुद्ध द्रव्यारथो, भेदकल्पना हीनो रे ....................... द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 5/12
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