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हड्डियों का ही फोटो लेती है, उसी प्रकार यह नय कर्मजन्य संसारी भावों जैसेदेव, मनुष्य, क्रोधी, मानी, सुन्दर, असुन्दर आदि को बींध करके सीधे शुद्धात्म स्वरूप को ही देखता है15 और संसारी जीव को भी सिद्ध समान ग्रहण करता है। ___ अशुद्ध नय की दृष्टि से जीव, मार्गणास्थान और गुणस्थान के आधार पर चौदह भेदवाला होता है। परन्तु शुद्ध नय की दृष्टि से तो सर्वजीव शुद्ध ही है।16 आत्मतत्त्व जीवस्थान, मार्गणास्थान और गुणस्थान से रहित है। द्रव्यसंग्रह का यह कथन कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिकनय दृष्टि से किया गया है।
2. उत्पादव्यय निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय :
द्रव्यार्थिक नय के दूसरे भेद में उत्पाद-व्यय की गौणता और सत्ता के ध्रौव्य पक्ष की मुख्यता होती है। जैसे- द्रव्य नित्य है। पर्यायों की उत्पत्ति एवं विनाश को गौण करके ध्रुव सत्ता की मुख्यता से विवक्षा करना उत्पाद व्ययनिरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय का विषय है।217 इसमें द्रव्य के नित्य स्वरूप का ग्रहण होता है।
उत्पाद–व्यय-ध्रौव्य सत् का लक्षण है। उत्पाद-व्यय पर्यायार्थिकनय का विषय है तथा ध्रौव्यता द्रव्यार्थिकनय का विषय है। उत्पाद-व्यय को गौण करके मात्र सत्ता को ग्रहण करनेवाला नय सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है।18 देवसेनाचार्य ने इस नय को सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिकनय कहा है। जीव, पुदगल आदि की पर्याये तो क्षण-क्षण बदलती रहती है। परन्तु सत्ता त्रिकाल में अविचलित रहती है। ऐसी अविचलित सत्ता ही जिसका विषय है, उसे सत्ताग्राहक शुद्ध द्रव्यार्थिकनय कहते
हैं।19
215 द्रव्यगुणपर्यानोरास भाग-2, विवेचन- अभयशेखरसूरि, पृ. 190 216 मग्गण गुण ठाणेहिं य चउ दसहिं.
.... द्रव्यसंग्रह, गा. 1/13 217 उत्पादव्ययगौण सत्तामुख्यतया परः ......
द्रव्यानुयोगतर्कणा, श्लो. 5/11 218 उत्पादवयं गउणो किच्चा जो गहइ केवलं सत्ता ............. नयचक्र, गा. 191 219 उत्पाद-व्यय गौणत्वेन सत्ता ग्राहकः ..
आलापपद्धति, सू. 48
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