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________________ 1. कर्मोपाधि शुद्ध द्रव्यार्थिक नय : अपने नामानुसार जो नय कर्मों की उपाधि से निरपेक्ष जीव (आत्मा) के शुद्ध स्वरूप को अपना विषय बनाता है, वह कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय कहलाता है । 211 जैसे संसारी जीव भी सिद्ध-भगवान के समान शुद्ध है। नरक, तिर्यच, मनुष्य और देव, इन चारों गतियों में जन्ममरण करना संसार है। जिन जीवों के पूर्वोक्त चारों गतियों में से किसी एक गति का उदय है वे संसारी जीव हैं। इन संसारी जीवों के मनुष्यादि पर्याय को गौण करके सहजभावरूप शुद्ध आत्मस्वरूप को आगे करना कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है । 212 संसारी जीव कर्मोपाधि से मुक्त नहीं है। प्रत्येक संसारी जीव के साथ ज्ञानावरणीयादि आठों कर्म लगे हुए हैं । किन्तु द्रव्य से या पारमार्थिक दृष्टि से संसारी जीव भी सिद्धों के जीव के समान परमशुद्ध ही है। क्योंकि उनका एक भी आत्मप्रदेश कर्मपुद्गल रूप नहीं हुआ है। इस प्रकार द्रव्य की वर्तमान पर्याय को भी गौण करके शुद्ध द्रव्य मात्र को ग्रहण करना इस द्रव्यार्थिक नय का विषय होने से यह नय कर्मों के मध्य में स्थित संसारी जीव को सिद्ध के समान शुद्ध रूप से ग्रहण करता है 213 यशोविजयजी के ‘द्रव्यगुणपर्यायनोरास' के अनुसार भव पर्याय को गौण करके जीव के कर्मोपाधि रहित सहज स्वरूप को ग्रहण करने वाला नय कर्मोपाधि निरपेक्ष शुद्ध द्रव्यार्थिक नय है । 214 यह नय कर्मों की उपाधि और उनके विभिन्न प्रभाव होने पर भी उन सबकी उपेक्षा करके संसारी जीव के अन्तरंग शुद्ध स्वरूप को ही देखता है । जैसे X-Ray की मशीन वस्त्र, वस्त्र का मैल, चमड़ी आदि को बींध करके सीधे 211 कर्मोपाधि निरपेक्षः शुद्ध द्रव्यार्थिकः यथा संसारी जीव सिद्ध सदृश शुद्धात्मा 212 यथा संसारिणः सन्ति प्राणिनः सिद्धसभा 5/10 213 कम्माणं मज्झगदं जीवं जो 214 जिम संसारी प्राणीया, सिद्ध समो वडी गणीइ Jain Education International 127 आलापपद्धति, सू. 47 द्रव्यानुयोगतर्कणा, नयचक्र, गा. 190 . द्रव्यगुणपर्यायनोरास, गा. 5 / 10 For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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