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यशोविजयजी ने जैनतर्कभाषा ग्रन्थ में नय के ज्ञाननय और क्रियानय के रूप में भी भेद किया है। ज्ञान की प्रधानता स्वीकार करनेवाला ज्ञाननय एवं क्रिया की प्रधानता स्वीकार करने वाला क्रियानय है।205
_ दिगम्बर मत के देवसेनकृत 'नयचक्र' आदि ग्रन्थों में तर्कशास्त्र के अनुसार द्रव्यार्थिक नय, पर्यायार्थिकनय, नैगमनय, संग्रहनय, व्यवहारनय, ऋजुसूत्रनय, शब्दनय, समभिरूढ़नय और एवंभूतनय ये नौ नय एवं सद्भूत व्यवहार, असद्भूत व्यवहार और उपचरित असद्भूत व्यवहार ये तीन उपनय तथा अध्यात्मदृष्टि के अनुसार निश्चयनय और व्यवहारनय ये दो उपनय माने गये हैं जिसका विस्तृत वर्णन यशोविजयजी के द्रव्य-गुण-पर्यायनोरास में उपलब्ध होता है।206
नयों के प्रकारों का विवेचन -
'द्रव्यगुणपर्यायनोरास' की पांचवी ढाल में उपाध्याय यशोविजयजी ने द्रव्यार्थिक नय और उसके दस भेदों का वर्णन विस्तार से किया है।
प्रत्येक वस्तु द्रव्यपर्यायात्मक या सामान्यविशेषात्मक होती है। एक ही वस्तु एक अपेक्षा से सामान्य रूप है तो वही वस्तु दूसरी अपेक्षा से विशेषरूप है। वस्तु के सामान्य और विशेषरूप को अथवा द्रव्य और पर्याय को देखनेवाली दो आँखे हैं - द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय। वस्तु के विशेष रूप को या पर्यायरूप को गौण करके सामान्य या द्रव्यरूप को मुख्यता से देखनेवाली दृष्टि द्रव्यार्थिक नय है। द्रव्य ही जिसका विषय या अर्थ है वह द्रव्यार्थिक नय है।207 इस नय का विषय द्रव्य ही
होता है।208
205 ज्ञानमात्रप्राधान्याभ्युपगमपरा ज्ञाननयाः
क्रियामात्रप्राधान्यभ्युपगमपराश्चय क्रिया नयाः 206 नवनय, उपनय तीन छाई 207 द्रव्यमेवार्थः प्रयोजनमस्येति द्रव्यार्थिकः -
जैनतर्कभाषा, पृ. 64 द्रव्य-गुण-पर्यायनोरास, गा. 8/8
आलापपद्धति, सूत्र 184 नयचक्र, गा. 189
208 पज्जय गउणं किच्चा दव्वंपि य जो ह गिहणइ लोए. ...
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