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ही प्रतिपादन करके संग्रह आदि नयों को, इन दो नयों में समावेश किया है।197 ज्ञातव्य है कि सिद्धसेन दिवाकर नैगम नय का निषेध करके छह नयों को ही स्वीकार करते हैं। क्योंकि नैगम नय सामान्य ग्राहक है तो संग्रहनय में तथा विशेषग्राहक है, तो व्यवहारनय में अन्तर्निहित हो जाता है। द्वादशारनयचक्र में मूल दो नयों और दर्शनयुग के सात नयों के साथ-साथ अन्यत्र अनुपलब्ध -ऐसे विधि, नियम आदि बारह नयों का उल्लेख किया गया है।198 इन बारह नयों का द्रव्यार्थिकनय, पर्यायार्थिकनय तथा सात नयों में समावेश हो जाता है, यथा99विधि
- व्यवहार नय
2.
विधि विधिः
- संग्रह नय
-
- द्रव्यार्थिकनय
विद्युभयम् विधि नियमः
उमयम
- नैगम नय
उमयविधिः
उभयोभयम्
- ऋजुसूत्रनय
उभयनियमः
नियमः
- शब्दनय
- पर्यायार्थिकनय
नियमविधि
- समभिरूढनय
नियमोभयम्
12.
नियमनियमः
- एवंभूतनय
197 दव्वद्वियणयपयडी
सन्मतिसूत्र 1/3 मूलणिभेणं
सन्मतिसूत्र 1/4 198 तयोर्भड्.गा ................................ द्वादशारंनयचक्र, पृ. 10 199 द्वादशार नयचक्र का दार्शनिक अध्ययन .............. जितेन्द्र बाबुलाल शाह, पृ. 222
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