SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 142
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ 122 संज्ञा दी गई है।191 निश्चयनय वस्तु के यथार्थ स्वरूप को ग्रहण करता है, जबकि व्यवहार नय उसके सोपाधिक स्वरूप को ग्रहण करता है। भगवतीसूत्र में इन दोनों नय का उदाहरण मिलता है – गौतम के द्वारा यह पूछने पर कि भगवन्! प्रवाही गुड़ का स्वाद कैसा होता है ? भगवान ने उत्तर दिया – प्रवाही गुड़ व्यवहार से मीठा कहा जाता है, किन्तु निश्चयनय से पांचों प्रकार के स्वाद वाला है। 192 उत्तराध्ययनसूत्र में नयों का उल्लेख तो किया गया है, परन्तु वहां भेदों की कोई चर्चा नहीं मिलती है। स्थानांगसूत्र'3 तथा अनुयोगद्वारसूत्र'94 में नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र, शब्द, समभिरूढ़ तथा एवंभूत इन सात नयों का उल्लेख मिलता दार्शनिक युग में नय का विभाजन : जैन दार्शनिक ग्रन्थों में सर्वाधिक प्राचीन ग्रन्थ तत्त्वार्थसूत्र है। इस सूत्र के प्रथम अध्याय के अन्तिम दो सूत्रों में नयों के भेद-प्रभेद की चर्चा की गई है। प्रथम सूत्र में नयों के नैगम, संग्रह, व्यवहार, ऋजुसूत्र एवं शब्द, ऐसे पांच भेद किये गये हैं।195 उसके अगले सूत्र में नैगमनय के दो भेदों तथा शब्द नय के तीन भेदों का भी उल्लेख मिलता है।196 जबकि उसके सर्वार्थसिद्धि मान्य पाठ में सात नयों का ही उल्लेख है। सिद्धसेन दिवाकर ने मूल रूप से द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नयों का ........... VTT1 7 191 निश्चयनयस्तु द्रव्याश्रितत्वात .. व्यवहारनयः किल पर्यायाश्रित वाज्जीवस्य .............. समयसार/आत्मख्याति/गा. 56 192 वावहारियनयस्स गोड्डे, फालियगुलो नेच्छइयनयस्स पंचवण्णे दुगंधे, पंचरसे, अट्ठफासेपन्नतो, .............. भगवतीसूत्र भाग 2 पृ. 813 193 सत्त मूल नया पन्नता, तं जहा णेगमे, संगहे ववहारे उज्जुसुत्ते, सद्दे, समभिरूढे एवंभूते । . स्थानांगसूत्र/पृ. 582 194 सत्त मूल नया पन्नता, तं जहा णेगमे, संगहे ववहारे उज्जुसुत्ते, सद्दे, समभिरूढे एवंभूते। .... अनुयोगद्वार/पृ. 167 195 नैगम संग्रह .............. तत्त्वार्थसूत्र, 1/34 19 आद्यशब्दौद्वित्रिभेदौ ... तत्त्वार्थसूत्र 1/35 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy