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आगम काल में नय विभाजन -
प्राचीन अर्धमागधी आगम साहित्य में नयों की चर्चा सर्वप्रथम भगवतीसूत्र में हुई है। भगवतीसूत्र में स्पष्ट रूप से द्रव्यार्थिकनय और पर्यायार्थिकनय का उल्लेख नहीं है, किन्तु उसके स्थान पर द्रव्यादेश, भावादेश के आधार पर विवेचन किया गया है। यह विवेचन भगवतीसूत्र के पांचवे शतक के अष्टम उद्देशक के 202 से 205 तक के सूत्रों में मिलता है। वहां द्रव्यादेश, क्षेत्रादेश, कालादेश, भावादेश इन चार आदेशों से चर्चा की गई है।186 इसी प्रकार भगवतीसूत्र के 25 वें शतक में भी द्रव्य की अपेक्षा और प्रदेश की अपेक्षा से चर्चा मिलती है।187 परन्तु कहीं भी द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय का उल्लेख नहीं है। अभिधान राजेन्द्रकोष में भी द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिकनयों की चर्चा सन्मतिसूत्र के आधार पर ही की गई है। इससे ऐसा लगता है कि द्रव्यार्थिक और पर्यायार्थिक नय की चर्चा आगमिक नहीं है। संभवतः यह चर्चा सर्वप्रथम सन्मतिसूत्र से ही प्रारम्भ होती है। सन्मतिसूत्र के अनुसार द्रव्यार्थिक नय वस्तु के सामान्य या नित्य पक्ष को अपना विषय बनाता है,188 जबकि पर्यायार्थिक नय वस्तु के विशेष या अनित्य पक्ष को अपना विषय बनाता है।189 संक्षेप में द्रव्यार्थिक नय का विषय द्रव्य है एवं पर्यायार्थिक नय का विषय पर्याय अर्थात् द्रव्य का परिवर्तनशील पक्ष है।
भगवतीसूत्र में निश्चयनय और व्यवहारनय के रूप में स्पष्ट उल्लेख मिलता है।190 द्रव्य के आधार पर वस्तुस्वरूप का विवेचन करनेवाली ज्ञाता की दृष्टि को निश्चयनय तथा पर्याय के आधार पर विवेचन करने वाली दृष्टि को व्यवहार नय की
186 भगवतीसूत्र - 5/8/202 से 205 187 भगवतीसूत्र – 25/3/34, 35 188 दव्वट्ठियणयपयडी सुद्धा .........
सन्मतिसूत्र, गा. 1/3 189 मूलणिभेणं पण्णवणस्स
........... वही, गा. 1/4 190 गोयमा एत्थ दो नया भवंति तं जहा–नेच्छइयनए य वावहारियाएय.......... भगवतीसूत्र, भाग 2 पृ.814
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