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________________ 118 जाना जाता है, वक्ता का वह अभिप्राय नय कहलाता है।74 अभिप्राय से तात्पर्य है - वक्ता की वह इच्छा जो अनन्तधर्मात्मक वस्तु के किसी एक धर्म को मुख्य बनाकर अन्य धर्मों को गौण बनाती है। आचार्य जयसेन की दृष्टि में प्रमाण से परिगृहीत वस्तु के एकदेश में वस्तु का निश्चय किया जाना ही नय के विषय का अभिप्राय है।175 4. नय एकदेश वस्तुग्राही : __ वस्तु में नित्यता, अनित्यता आदि परस्पर विरूद्ध प्रतीत होने वाले अनन्तधर्म होते हैं। इन अनन्त धर्मों में से किसी एक धर्म विशेष को ग्रहण करके कथन करना नय का विषय है। अनेकान्त वस्तु में विरोध के बिना हेतु की मुख्यता से साध्य विशेष की यथार्थता को प्राप्त कराने में समर्थ प्रयोग को नय कहते हैं।76 तत्वार्थश्लोकवार्तिक'7 में प्रमाण के विषयभूत पदार्थ के एक देश के निर्णय को नय का लक्षण बताया गया है। परस्पर विरूद्ध प्रतीत होने वाले दो धर्मों में से एक धर्म को ही जो विषय करता है या दो विरूद्ध धर्म वाले तत्त्वों में से जो किसी एक धर्म का वाचक है, वह नय कहलाता है।78 इस तरह नय वस्तु के एक धर्म को ही अपना विषय बनाता है, क्योंकि उस समय उसे उस धर्म की ही विवक्षा अपेक्षित रहती है, अन्य धर्मों की नहीं79 इस प्रकार नय लोक व्यवहार को वस्तु के एक धर्म की विवक्षा से सिद्ध करता है।180 ज्ञातव्य है कि नय एक धर्म/पर्याय को विवक्षा भेद से ग्रहण करने पर 174 प्रतिपत्तुरभिप्रायविशेषोनयः .... स्याद्वादमंजरी, 28 175 जैनदर्शन में नय की अवधारणा ..................... डॉ. धर्मचन्द्र जैन, पृ. 10 176 तावदृस्तुन्यनेकान्तात्म तत्त्वार्थ-सर्वाथसिद्धि, 1/33 177 स्वार्थेकदेशव्यवसायात्मकत्वादित्यक्तं श्लोकवार्तिक, 1/33/2 17 विरूद्ध धर्म द्वयात्मके तत्वे .... ............... पंचाध्यायी, पूर्वार्द्धश्लोक, 504 Wणाणाधम्मजुदंपिय ....................................... कार्तिकेयानुप्रेक्षा, गा. 264 लोयाणं ववहारं ........... वही, गा. 263 युक्त ............... Jain Education Intemational For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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