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________________ 113 नय की निरूक्तिपरक व्याख्या : णीन् प्रापणे धातु में अच् प्रत्यय लगने पर नय पद सिद्ध होता है। इसका एकमात्र अर्थ है – ले जाना या प्राप्त करना। ज्ञान के क्षेत्र में वस्तु का बोध करना व कराना ही नय है। जो वस्तु के ज्ञान की ओर ले जाता है अर्थात् उसका सम्यक् बोध कराता है वह नय है – नयन्ति गमयन्ति प्राप्नुवन्ति वस्तु ये ते नयः146 उमास्वातिजी की दृष्टि में जीवादि पदार्थों को जो लाते हैं, प्राप्त कराते हैं, बताते हैं, अवभास कराते हैं, उपलब्ध कराते हैं, प्रगट कराते हैं, वे नय हैं।147 इसका तात्पर्य है, वस्तु के नाना स्वभावों या गुणों को हटाकर वस्तु के एक स्वभाव या गुण को जो प्राप्त कराये वह नय है।148 संसार में व्यवस्थित पदार्थों का जैसा स्वरूप है, उसका वैसा ही बोध अथवा ज्ञान जिससे कराया जाता है, वह नय है।149 'स्यादवादमंजरी' में जिस नीति के द्वारा एकदेश से अर्थात् आंशिक रूप से वस्तु के विशिष्ट गुणधर्म को लाया जाता है अर्थात् प्रतीति के विषय को प्राप्त कराया जाता है, उसे नय कहा गया है। __ नय जैनदर्शन का एक दृढ़तम आधार स्तम्भ रहा है। अनुयोगद्वारसूत्र, आवश्यक नियुक्ति, तत्वार्थाधिगमसूत्र, सन्मतितर्क, नयचक्र आप्तमीमांसा, आलापपद्धति, अनेकान्तजयपताका, न्यायावतार, नयरहस्य, नयोपदेश, द्रव्य-गुण-पर्यायनोरास आदि अनेक ग्रन्थों में नय का विशद वर्णन उपलब्ध है। इन ग्रन्थों में आगमिक परंपरा का अनुसरण करते हुए अपने-अपने दृष्टिकोण से नय को परिभाषित किया गया है। इन सभी ग्रन्थों के लेखकों ने नय के स्वरूप पर चार प्रकार से प्रकाश डाला है - 1. प्रमाण के द्वारा गृहीत वस्तु के एक अंश को ग्रहण करना नय है। 1% उत्तराध्ययन चूर्णि, पृ. 138 17 जीवादीन् पदार्थान् .............. तत्त्वार्थाधिगम भाष्य, 1/35 नानास्वभावेभ्यो .............. आलाप पद्धति, सू. 181 नयचक्र परिशिष्ट, पृ. 224 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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