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________________ ___110 जैनदर्शन में कहा गया है कि सर्वज्ञ सब कुछ जानने पर भी, उसे कहना चाहे तो सापेक्ष रूप से, नयवाद से ही कह सकता है। अनेकान्तवाद मूक है और नयवाद उसे वाणी प्रदान करता है। सत्ता अनंत धर्मात्मक होते हुए भी नयदृष्टि के अभाव में वह अलुप्त या अवाच्य ही रह जाती है, क्योंकि बिना नयवाद का सहारा लिए अनेकान्तवाद को समझना भी मुश्किल होता है। अनेकान्वाद वस्तु के तात्त्विक स्वरूप का प्रतिपादन करता है। किन्तु यह प्रतिपादन नयवाद के बिना संभव नहीं हो पाता है। वस्तुतः अनेकान्तवाद और नयवाद एक दूसरे के पूरक हैं। इसीलिए वस्तु के सम्यक् स्वरूप के प्रतिपादन में दोनों की अहम भूमिका रही हुई है। अनेकान्तवाद प्रतिपाद्य है जबकि नयवाद प्रतिपादन है। अनेकान्तवाद के बिना वस्तु तत्त्व को सम्यक् रूप से नहीं जाना जा सकता है, ठीक इसी प्रकार बिना नयवाद के वस्तु स्वरूप को भी नहीं बताया जा सकता है। जैनदर्शन में नय-स्वरूप और नय-विभाजन नय-स्वरूप : जैनदर्शन अनेकान्तवाद का पोषक दर्शन होने से वस्तु को अनन्तधर्मात्मक मानता है। उसके अनुसार दो विरोधी गुण धर्म यदि वे एक दूसरे के व्याघातक न हो जैसे जीव में चेतन अचेतन गुण तो वस्तु में एक साथ या सहभावी होकर रहते हैं। जैसे - आत्मा नित्य भी है, अनित्य भी है, शुद्ध भी है, अशुद्ध भी है, एक भी है, अनेक भी है, मूर्त भी है, अमूर्त भी है। वस्तु के अनेक धर्म होने पर भी ज्ञाता किसी एक धर्म की मुख्यता से ही वस्तु का कथन करता है। जैसे- व्यक्ति में अनेक सम्बन्धों के होते हुए भी प्रत्येक व्यक्ति (सम्बन्धी) उसे अपनी दृष्टि से ही सम्बोधित करता है। उसका पुत्र उसे पिता कहकर पुकारता है, तो उसका पिता उसे पुत्र कहकर पुकारता है। किन्तु व्यक्ति न केवल पिता ही है और न केवल पुत्र ही है, । अपितु अन्य अनेक सम्बन्ध भी व्यक्ति के साथ लगे हुए रहते हैं। ऐसी Jaindication International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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