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________________ सप्तभंगी वस्तु अनेकान्तात्मक है और उसके इस अनेकान्तिक स्वरूप को प्रकाशित करने वाली निर्दोष भाषा पद्धति स्याद्वाद है । भाषायी अभिव्यक्ति के 'हैं', 'नहीं है', 'कुछ कहा नहीं जा सकता है' आदि मुख्य तीन विकल्पों को प्रस्तुत करने वाली सप्तभंगी है। वस्तु के अनन्त धर्मों में से प्रत्येक धर्म की सुनिश्चित संगति बिठाने के लिए विधि, निषेध आदि की विवक्षा से जो सात भंग होते हैं, वही सप्तभंगी है । 116 अनेकान्तवादी के समक्ष सबसे बड़ी कठिनाई यह है कि अनन्त धर्मात्मक वस्तु के समग्र स्वरूप को एक साथ स्पष्ट कैसे करें ? जिससे वस्तु के अनंत धर्मों का प्रतिपादन हो सके। ऐसा संभव नहीं होने के कारण सारे धर्मों का क्रमिक विवेचन ही किया जाता है। इन क्रमिक विवेचनों में परस्पर समन्वय बनाये रखने के लिए 'स्यात्' ( अपेक्षा विशेष) शब्द को जोड़कर ही कथन किया जाता है। यह कथन भी किसी न किसी विधि या निषेध रूप में ही किया जा सकता है। इस प्रकार सप्तभंगी का मुख्य लक्ष्य है विभिन्न अपेक्षाओं के आधार पर वस्तु के भिन्न-भिन्न धर्मों का विधि निषेध करके, किसी एक अपेक्षित धर्म का विधान करना । 117 आचार्य अकलंक के अनुसार सप्तभंगी की परिभाषा इस प्रकार है 'प्रश्न के आधार पर वस्तु में अविरूद्ध रूप से जो विधि और निषेध की परिकल्पना की जाती है, वह सप्तभंगी है | 118 101 ― डॉ. सागरमलजी जैन के अनुसार सप्तभंगी अनंतधर्मात्मक वस्तु के पूर्ण स्वरूप को दृष्टि में रखकर, उसके अनुक्त धर्मों की संभावना का निषेध न करते हुए सापेक्षिक किन्तु निश्चयात्मक रूप से वस्तु तत्त्व के किसी एक धर्म का मुख्य रूप से 116 सप्तभिः प्रकारैर्वचन - विन्यासः सप्तभंगीतिगीयते । स्यादवादमंजरी का. 23 की टीका 117 धर्मदर्शनः मनन और मूल्यांकन, पृ. 182 18 प्रश्नवशादेकस्मिन् वस्तुन्यविरोधेन विधि - प्रतिषेध विकल्पना सप्तभंगी । तत्त्वार्थराजवार्तिक 1/6/5 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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