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________________ और ध्रौव्य से युक्त है। इस प्रकार द्रव्य की दृष्टि से सत्ता नित्य है और पर्याय की दृष्टि से अनित्य है। भगवान महावीर से पूछा गया कि जीव नित्य है, या अनित्य ? भगवान का उत्तर था -जीव अपेक्षा से भेद से नित्य भी है और अनित्य भी है। द्रव्यदृष्टि से जीव नित्य और पर्याय दृष्टि से जीव अनित्य है। नित्य और अनित्य के समान ऐसे अनन्त परस्पर विरोधी धर्म वस्तु में सापेक्ष रूप से विद्यमान रहते हैं। अतः वस्तु में स्वीकारात्मक, निषेधात्मक, परस्पर विरोधी, परस्पर-अविरोधी आदि अनेक गुणधर्म होने से वस्तु का स्वरूप अनन्तधर्मात्मक और अनैकान्तिक है। ज्ञान और अभिव्यक्ति की सीमितता - जब प्रत्येक वस्तु अनन्त धर्मात्मक सिद्ध होती है तब वस्तु के अनेक गुणधर्मों की ओर दृष्टि को ओझल करके किसी एक गुण धर्म का सर्वथा विधान करना एकान्तिक कथन है, जो असत्य का प्रतिपादक हो जायेगा। अनन्त धर्मात्मक वस्तु के किसी भी धर्म का निषेध नहीं करते हुए सभी धर्मों का विधायक कथन ही वस्तुतत्त्व का सत्य प्रतिपादन कर सकता है। इस दृष्टि से देखा जाय तो अनन्त धर्मात्मक वस्तु तत्त्व के यथार्थ स्वरूप का ज्ञान करना सहज नहीं है। हर वस्तु में इतने अधिक धर्म, गुण, पर्याय आदि मौजूद रहते हैं कि उनको बता पाना असंभव नहीं होने पर भी कठिन अवश्य हो जाता है। एक ओर वस्तु का स्वरूप विराट है, तो दूसरी ओर इस विराट स्वरूप को जानने के हमारे साधन सीमित हैं। मानव के पास सत्यगवेषणा के लिए दो ही साधन हैं - इन्द्रियाँ और तर्क बुद्धि । इन्द्रियाँ वस्तु के पूर्ण ज्ञान को प्राप्त करने के लिए असक्षम है। इसका मुख्य कारण है इन्द्रियाँ पौद्गलिक होने से व्यक्त गुणधर्म को ही जान पाती है। अव्यक्त गुणधर्मों को जानने के लिए इन्द्रियाँ असमर्थ है। दूसरा कारण यह है कि इन्द्रियों की क्षमता व्यक्ति के क्षयोपशम पर भी निर्भर रहती हैं। दूर स्थित 85 दवं पज्जविउयं दव्व विउता या पज्जवाणत्थि अप्पाय-ट्टिइ-भंगा हंदि दवियलक्कखणं एवं ................ सन्मतिप्रकरण, 1/12 86 गोयमा। जीवा सिय सासया सिय असासया दब्याए सासया भावट्टयाए असासया ।.. ................ भगवतीसूत्र, 7/3/273 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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