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________________ उसे अनेकान्त कहा जाता है। 1 धवला 2 में अनेकान्त शब्द का अर्थ 'जात्यन्तर' बतलाया गया है। इसका अभिप्राय यह है कि अनेक धर्मों को मिलाने पर ज्ञप्त होता है, वह अनेकान्त है। दूसरे शब्दों में ऐसा कहा जा सकता है कि वस्तु में जो अनेक सामान्य और विशेष गुण और पर्यायें हैं, उनको स्वीकार करना अनेकान्त है । ” सुरेश मुनि के अनुसार पदार्थ में अनेक परस्पर विरोधी विशेषताएँ होने के कारण पदार्थ अनेकान्त रूप है। जो पदार्थ की इस अनेकरूपता को प्रतिपादन करता है, वही अनेकान्तवाद है | 54 अनेकान्तवाद का विकास अनेकान्तवाद या स्याद्वाद शब्द को सुनकर बड़े-बड़े विद्वान भी यही समझते हैं कि अनेकान्तवाद जैनों का वाद है। इसका प्रमुख कारण यह है कि जैन विद्वानों ने इस पर न केवल अनेक ग्रन्थों की रचना करके अनेकान्तवाद की पुष्टि की, अपितु संपूर्ण शक्ति से अनेकान्तवाद का समर्थन किया और अनेकान्तवादरूपी शस्त्र को धारण करके ही अन्य दार्शनिकों का सामना किया है। पं. सुखलालजी कहते हैं कि अनेकान्त दृष्टि का मूल भगवान महावीर से भी पुराना है । यह ठीक है कि महावीर के पूर्ववर्ती जैन और जैनेतर ग्रन्थों में अनेकान्त का व्यवस्थित और विकसित रूप नहीं मिलता है, परन्तु महावीर के पूर्ववर्ती वैदिक साहित्य और समकालीन बौद्ध साहित्य में अनेकान्त दृष्टि के पोषक विचार मिल ही जाते हैं। इसी बात का समर्थन करते हुए डॉ. सागरमल जैन ने भी लिखा है कि अनेकान्तदृष्टि केवल जैन दार्शनिकों की एकमात्र बपौती नहीं है । अनेकान्त दृष्टि के संकेत वैदिक और 51 जैन तत्त्वमीमांसा, पं. फूलचन्द्र शास्त्री, पृ. 339 52 धवला, 15/25/1 53 अनेके अन्ताः धर्माः सामान्य विशेष पर्याय । गुणा सस्येति सिद्धेऽनेकान्तः, सप्तभंगीतरंगिणी, पृ. 30 54 मुनि श्री हजारीमल स्मृति ग्रन्थ, पृ. 350 55 दर्शन और चिन्तन, पं. सुखलाल जी, पृ. 149 82 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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