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________________ है, ऊँचा है तो नीचा भी है। यदि जीवन में ऐसे विरोधी युगल नहीं रहे तो जीवन की संभावना ही खतरे में पड़ जायेगी।18 इसी प्रकार वस्तु का स्वरूप भावात्मक (सद्भूत) एवं अभावात्मक (असद्भूत) धर्मों से युक्त है। ऐसी अनेक विरोधी और अविरोधी धर्मात्मक वस्तु चाहे चेतन हो या अचेतन, उसके यथार्थ स्वरूप के प्रतिपादन के लिए अनेकान्तदृष्टि ही आवश्यक है। अनेकान्तदृष्टि के बिना अनन्त धर्मात्मक वस्तु का स्वरूप-निरूपण संभव नहीं हो सकता है। एकान्त दृष्टि से किसी एक धर्म के आधार पर वस्तु का निर्णय किया जायेगा तो अपेक्षित धर्म के अतिरिक्त अनेक प्रतिद्वन्दी या परस्पर विरोधी धर्मों का निषेध हो जाने से वस्तु का वह स्वरूप प्रतिपादन अपूर्ण और अयथार्थ ही रहेगा। क्योंकि वस्तु में कुछ गुण धर्म अस्ति रूप में होते हैं तो कुछ गुण धर्म नास्ति रूप में भी होते हैं। घट में घटरूपता का अस्तित्व है, किन्तु पटरूपता का नास्तित्व भी है। इस सत्य को नकारा नहीं जा सकता है। वस्तु के अनेक पक्ष और पहलू होते हैं। उदाहरणार्थ अलग-अलग पर्वतारोही हिमालय पर्वत पर अलग-अलग दिशा से चढ़ेगे तो प्रत्येक पर्वतारोही को हिमालय का अलग-अलग दृष्य दिखाई देगा। अपने-अपने दृष्टिकोण के आधार पर चारों पर्वतारोही यदि ऐसा कहें कि “मैनें जैसा देखा है वैसा ही हिमालय है" तो वह हिमालय का पूर्ण स्वरूप नहीं हो सकता है। हिमालय का पूर्ण स्वरूप चारों दिशाओं का सम्मिलित रूप है। यह स्वरूप अनेकान्त दृष्टि से ही देखा जा सकता है। इस प्रकार पूर्ण सत्यता और यथार्थता का द्वारोद्घाटन अनेकान्तवाद ही कर सकता है। अनेकान्तवाद का मुख्य उद्देश्य यथार्थता को भिन्न-भिन्न पहलुओं से देखना, समझना एवं समझाने का प्रयास करना है। अतः यह एक ऐसी व्यावहारिक पद्धति है जो सत्य की विभिन्न दृष्टियों से खोज करती है।50 अनेकान्त शब्द 'अनेक' और 'अन्त' इन दो शब्दों से बना है, जिसका अर्थ हैअनेक अन्ताः धर्माः यस्यासौ अनेकान्तः । जिसमें अनेक अन्त अर्थात् धर्म पाये जाते हैं 48 अनेकान्त है तीसरा नेत्र, आचार्य महाप्रज्ञ, पृ. 12 49 जीवन पाथेय, साध्वी युगल निधि-कृपा, पृ. 32 50 अनेकान्तवाद, स्याद्वाद और सप्तभंगी, डॉ. सागरमल जैन, पृ.1 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003974
Book TitleDravya Gun Paryay no Ras Ek Darshanik Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyasnehanjanashreeji
PublisherPriyasnehanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages551
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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