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________________ 1. प्रभावकचारित्रानुसार अपने प्रिय शिष्यों की मृत्यु से क्रोधित होकर हरिभद्रसूरि ने महामन्त्र के प्रभाव से भिक्षुओं को आकर्षित कर आकाश मार्ग से ला- लाकर गर्म तेल के कुण्ड में डाल दिया 185 2. पुरातन प्रबन्धसंग्रह के अनुसार बौद्ध भिक्षुओं के प्रति भयानक क्रोध पैदा होने पर हरिभद्रसूरि ने उपाश्रय के पीछे गर्म तेल से भरा एक बहुत बड़ा पात्र तैयार करवाया और मन्त्र से आकृष्ट अनेक बौद्ध भिक्षु गगन-मार्ग से आकर उस तेल के पात्र में गिरकर और जलकर भस्म हो गए। — प्रस्तुत हिंसा की सूचना उनके गुरु आचार्य जिनदत्तसूरि को मिली। उन्होंने कोपातुर हरिभद्र को उपदेश देने हेतु दो श्रमणों द्वारा कुछ गाथाएं भिजवाईं। वे गाथाएं इस प्रकार हैं 86 समरादित्य के नवभवों का मात्र नाम - निर्देश इन तीन गाथाओं में किया गया है और अन्त में कहा गया है कि एक का मोक्ष हुआ तथा दूसरे का हिंसक - वृत्ति के कारण अनन्त भवभ्रमण बढ़ गया। गुरुदेव द्वारा प्रेषित इन गाथाओं से हरिभद्र गहन चिन्तन में डूब गए। जिस प्रकार मूसलाधार बरसात के आने पर दावानल शान्त हो जाता है, वैसे ही इन गाथाओं के प्रभाव से आचार्य का तप्त हृदय शान्त हुआ। उन्होंने हिंसात्मक क्रियाएं समाप्त कर दीं। हिंसाजनक पापवृत्ति के प्रायश्चित्तस्वरूप उन्होंने यह भीष्म प्रतिज्ञा की - मैं एक हजार चार सौ चंवालीस ग्रन्थों की रचना करके आत्मशुद्धि करूंगा । उन ग्रन्थों में सर्वप्रथम रचना 'समराइच्च' को कहा है, जो प्राकृत भाषा में रचित है। 85 इह किल कथयन्ति केचिदित्थं गुरुतरमन्त्र जाप प्रभावतोऽत्र । सुगतमत बुधान् विकृष्य तप्ते ननु हरिभद्रविभुर्जुहावतैले । । - प्रभावकचरित्र, श्लोक - 180 पुरातन प्रबन्ध-संग्रह से उद्धृत, श्लोक - 230, पृ. 105. प्रभावकचरित्र, श्लोक - 185 से 187. 87 42 गुणसेन - अग्गिसम्मा सीहानंदा य तह पिआपुत्ता। सिहि - जालिणी माइ, सुआ धण धणसिरिमोय पइभज्जा ।। जय-विजयाय सहोअर धरणोलच्छी अ तह पईभज्जा । सेण - विसेणा पित्तियं उत्ता जम्मम्मि सत्तम ।। गुणचन्द - वाणमन्तर समराइच्च गिरिसेण पाणो अ । एगस्स तओ मोक्खोऽणन्तो अन्नरस संसार ।। 87 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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