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________________ 28 यद्यपि भाष्य में भाष्यकार का नामोल्लेख नहीं है, फिर भी 'हेट्ठाऽवस्सए भणिय' चरणपद से 'आवश्यक' शब्द को सूचित किया गया है। इससे यह पता चलता है कि विशेषावश्यकभाष्य के भाष्यकार ही इस भाष्य के भी रचयिता हैं। प्रस्तुत भाष्य भी जिनभद्रगणि की दूसरी महत्त्वपूर्ण कृति है, इसमें कोई भी सन्देह नहीं। 2. बृहत्संग्रहणी - आगमों की सारभूत विषय-वस्तु का संक्षेप में ज्ञान करवाने वाली संग्रहणियां भी अति प्राचीन तथा आगमों के विषय को समझने में उपयोगी मानी जाती जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा रचित प्रस्तुत बृहत्संग्रहणीसूत्र में आगम के अनेक विषयों का संग्रह है, यथा इसमें जीवों की गति, स्थिति, औपपातिक-जन्म, नरकों के भवन, अवगाहना एवं मनुष्य तथा तिर्यंचों के आयुष्य आदि का वर्णन है। सूत्रकार ने इस कृति का नाम संग्रहणी लिखा है। यह ग्रन्थ पद्य-परिमाण की अपेक्षा से बड़ा होने के कारण इस ग्रन्थ की प्रसिद्धि 'बृहत्संग्रहणी' नाम से हो गई। इस ग्रन्थ पर आचार्य मलयगिरि ने टीका लिखी है और टीका के प्रारम्भ में जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण को नमन किया है। मलयगिरि के विचारानुसार इस कृति की मूल गाथाएं तीन सौ तिरपन हैं। आचार्य हरिभद्रसूरि ने भी इस ग्रन्थ पर टीका लिखी थी। यह ग्रन्थ जैन-दर्शन की भूगोल-खगोल सम्बन्धी जानकारी के लिए एक श्रेष्ठ ग्रन्थ है। उत्तरवर्ती कई जैन-आचार्यों ने तत्सदृश कुछ संग्रहणी ग्रन्थों की रचना की है। 3. बृहत्क्षेत्रसमास - प्रस्तुत ग्रन्थ के पांच प्रकरण तथा छ: सौ छप्पन गाथाएं हैं। जैन-मान्यतानुसार जम्बूद्वीप, लवणसमुद्र, धातकीखण्ड, कालोदधि तथा पुष्करार्द्ध आदि द्वीपों एवं समुद्रों का वर्णन इन प्रकरणों में वर्णित है। इसमें गणितानुयोग की भी चर्चा उपलब्ध होती है। मलयगिरि आदि कुछ आचार्यों ने इस पर टीकाएं भी लिखी हैं। 'क्षेत्रसमास' के नाम से भी कई ग्रन्थ रचे गए हैं, लेकिन प्रस्तुत 'बृहत्क्षेत्रसमास' नामक 5 ता संगहणि त्ति नामेणं, गाथा- 01. 55 नमत जिनबुद्धितेजः प्रतिहतनिःशेषकुमघनतिमिरम्। जिनवचनैकनिषण्णं जिनभद्रगणि क्षमाश्रमणम्।। - बृहतसंग्रहणी. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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