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________________ 2. जीतकल्पभाष्य - जीतकल्पसूत्र पर आधारित प्रस्तुत भाष्य के भाष्यकार भी जिनभद्रगणि ही हैं। इस भाष्य में जीत-व्यवहार के आधार पर दिए जाने वाले प्रायश्चित्तों का संक्षिप्त विवरण है। मूलसूत्र में एक सौ तीन गाथाएं तथा भाष्य में दो हजार छ: सौ छ: गाथाएं हैं। प्रमादवश धर्मक्रियाओं में दोष लगने पर प्रायश्चित्त के द्वारा साधक अपने अन्तःकरण की शुद्धि करता है। मूलसूत्र में आचार्य ने प्रायश्चित्त के आलोचना, प्रतिक्रमण, उभय, विवेक, व्युत्सर्ग, तप, छेद, मूल, अनवस्थाप्य और पारांचिक आदि दस भेदों का वर्णन किया है। इसके साथ ही, सभी प्रायश्चित्तों के अपराधस्थलों का निर्देश करते हुए यह बताया गया है कि किस अपराध के लिए कौन-सा प्रायश्चित्त दिया जाता है। इसमें यह भी बताया गया है कि अन्त के दो प्रायश्चित्त अनवस्थाप्य और पारांचिक-प्रायश्चित्त तो चौदह पूर्वधरों के समय में दिए जाते थे, अर्थात् अन्तिम दो प्रायश्चित्तों का प्रचलन चतुर्दश पूर्वधर आचार्य भद्रबाहुस्वामी तक रहा, तत्पश्चात् वे लुप्त हो गए। जीतकल्पभाष्य जीतकल्पसूत्र पर दो हजार छ: सौ छ: गाथाओं में लिखा गया स्वोपज्ञभाष्य है। इस भाष्य के अन्तर्गत जिन-जिन ग्रन्थों की गाथाओं को समाहित किया है, वे निम्नांकित हैं1. बृहत्कल्पभाष्य. 2. लघुकल्पभाष्य. 3. व्यवहारभाष्य. 4. पंचकल्पमहाभाष्य. 5. पिण्डनियुक्ति. प्रस्तुत ग्रन्थों की अनेक गाथाएं अक्षरशः मिलती हैं। भाष्य की शुरुआत में आगम, सूत्र, आज्ञा, धारणा एवं जीव-व्यवहार- इन पांच व्यवहारों का विस्तार से उल्लेख किया गया है। रचयिता के सन्दर्भ में संशय का निवारण करने के पश्चात् सूक्ष्मता से प्रायश्चित्त का अर्थ, आगमव्यवहार, प्रायश्चित्त-स्थान, प्रायश्चित्त-दाता, प्रायश्चित्त-दान की सापेक्षता, भक्तपरिज्ञा, इंगिनीमरण व पादोपगमन-संथारे का स्वरूप, श्रुतादिव्यवहार, जीतव्यवहार, प्रायश्चित्त के भेदों की गणना तथा उनका संक्षेप में वर्णन किया गया है। 52 जीतकल्पभाष्य, गाथा- 706-730. 5 जीतकल्पसूत्र (स्वोपज्ञभाष्य सहित) प्रस्तावना, पृ. 4-5. www.jainelibrary.org For Personal & Private Use Only Jain Education International
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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