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'परमात्मप्रकाश' में लिखा है कि संकल्प-विकल्पों से मुक्ति परमसमाधि है। 225 'महापुराण' में लिखा है कि विशुद्ध अध्यवसाय से यथार्थ समाधान ही समाधि है।26 'तत्त्वानुशासन' में लिखा है कि शुद्ध स्वरूप में अवस्थित रहना ही समाधि है।227 'विसुद्धिमग्गो' में लिखा है कि कुशल चित्त की एकाग्रता ही समाधि है। 228 "उपशमन समाधि का है। जिस प्रकार वायु के प्रवेग से रहित स्थान में दीपक की शिखा अपने स्थिर स्वभाव को प्राप्त कर लेती है, उसी प्रकार समाधि में चित्त अपनी स्वाभाविक स्थिति को प्राप्त कर लेता है।"229
समाधि के प्रकार -
समाधि
द्रव्य-समाधि
भाव-समाधि
जिस द्रव्य से समाधि प्राप्त होती है, जैसे- व्यक्ति, परिस्थिति, पदार्थ आदि के संयोग से प्राप्त शान्ति, आनंद, हर्ष
जिस भाव से साधक सम्कचारित्र में
स्थित होता है।
आदि
समयग्दर्शन समाधि
साधक आत्म-साक्षात्कार में संलग्न रहता है
सम्यग्ज्ञान समाधि सम्यकचारित्र समाधि तप . साधक आत्मा को साधक जिनाज्ञा में परीषहजयी एवं जानता है स्थिर रहता हुआ ग्लानिरहित ज्ञान
आराधना में संलग्न ध्यान से स्वात्मा में - रहता है। संलग्न रहता है।
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225 परमात्मप्रकाश - 2/1 226 महापुराण सर्ग -21, श्लोक-226 227 समाधितंत्र, गाथा 17 की टीका पृ. 32 228 कुसलचित्तेग्गता समाधि। - विसुद्धिमग्गो, खण्ड-1 22 प्रस्तुत संदर्भ –“जैन एवं बौद्ध योग” पुस्तक से उद्धृत, पृ.52
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