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________________ 358 आचार्य भद्रबाहु का कहना है कि कायोत्सर्ग तीन भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में किया जा सकता है - 1.खड़े होकर, 2. बैठकर और 3. सोकर। 205 शारीरिक अवस्था तथा मानसिक-विचारवृत्ति की अपेक्षा से कायोत्सर्ग के नौ भेद किए गए हैं,206 वे निम्नांकित हैं - शारीरिक अवस्था मानसिक-विचारवृत्ति 1. | उत्सृत-उत्सृत खड़ा धर्म-शुक्लध्यान 2. | उत्सृत खड़ा न धर्म-शुक्ल, न आर्त्त-रौद्र किन्तु चिन्तनशून्य दशा 3. उत्सृत-निषण्ण | खड़ा आर्त्त-रौद्रध्यान | निषण्ण-उत्सृत | बैठा धर्म-शुक्लध्यान 5. | निषण्ण न धर्म-शुक्ल, न आर्त्त-रौद्र, किन्तु चिंतनशून्य दशा 6. | निषण्ण-निषण्ण | बैठा आर्त्त-रौद्रध्यान निपन्न-उत्सृत | लेटकर धर्म-शुक्लध्यान | निषपन्न | लेटकर न धर्म-शुक्ल, न आर्त्त-रौद्र, किन्तु चिंतनशून्य दशा | निपन्न–निपन्न | लेटकर | आर्त्त-रौद्रध्यान __उपर्युक्त कायोत्सर्ग के भेदों में जिस-जिस रूप में ध्यान का समावेश हुआ है, उससे यह स्पष्ट होता है कि वह कायोत्सर्ग का प्रवेशद्वार है। यहाँ यह ज्ञातव्य 205 उस्सिअनिसन्नग निवन्नगे य इक्किक्कगंमिउ पयंमि।। – आवश्यकनियुक्ति, गाथा 1475 . 206 उसिउस्सिओ अ तह उस्सिओ अ उस्सियनिसन्नओ चेव । निसनस्सिओ निसन्नो निसन्नगनिसन्नओ चेव।। निवणुस्सिओ निवन्नो निवन्ननिवन्नगो य नायव्वो एएसिं।। - आवश्यक नियुक्ति, नियुक्तिसंग्रह, गाथा 1473-1474, पृ. 164 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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