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आचार्य भद्रबाहु का कहना है कि कायोत्सर्ग तीन भिन्न-भिन्न अवस्थाओं में किया जा सकता है - 1.खड़े होकर, 2. बैठकर और 3. सोकर। 205 शारीरिक अवस्था तथा मानसिक-विचारवृत्ति की अपेक्षा से कायोत्सर्ग के नौ भेद किए गए हैं,206 वे निम्नांकित हैं -
शारीरिक अवस्था
मानसिक-विचारवृत्ति
1. | उत्सृत-उत्सृत
खड़ा
धर्म-शुक्लध्यान
2. | उत्सृत
खड़ा
न धर्म-शुक्ल, न आर्त्त-रौद्र किन्तु चिन्तनशून्य दशा
3. उत्सृत-निषण्ण
| खड़ा
आर्त्त-रौद्रध्यान
| निषण्ण-उत्सृत
| बैठा
धर्म-शुक्लध्यान
5. | निषण्ण
न धर्म-शुक्ल, न आर्त्त-रौद्र, किन्तु चिंतनशून्य दशा
6. | निषण्ण-निषण्ण
| बैठा
आर्त्त-रौद्रध्यान
निपन्न-उत्सृत
| लेटकर
धर्म-शुक्लध्यान
| निषपन्न
| लेटकर न धर्म-शुक्ल, न आर्त्त-रौद्र, किन्तु चिंतनशून्य दशा
| निपन्न–निपन्न
| लेटकर | आर्त्त-रौद्रध्यान
__उपर्युक्त कायोत्सर्ग के भेदों में जिस-जिस रूप में ध्यान का समावेश हुआ है, उससे यह स्पष्ट होता है कि वह कायोत्सर्ग का प्रवेशद्वार है। यहाँ यह ज्ञातव्य
205 उस्सिअनिसन्नग निवन्नगे य इक्किक्कगंमिउ पयंमि।। – आवश्यकनियुक्ति, गाथा 1475 . 206 उसिउस्सिओ अ तह उस्सिओ अ उस्सियनिसन्नओ चेव ।
निसनस्सिओ निसन्नो निसन्नगनिसन्नओ चेव।। निवणुस्सिओ निवन्नो निवन्ननिवन्नगो य नायव्वो एएसिं।।
- आवश्यक नियुक्ति, नियुक्तिसंग्रह, गाथा 1473-1474, पृ. 164
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