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गतिविधियों का नियन्त्रण किया जाता है। कायोत्सर्ग करने से पूर्व जो आगारसूत्र का पाठ बोला जाता है, उसमें श्वसन - प्रक्रिया, छींक - जम्भाई का स्पष्ट उल्लेख है ।199 अतः, कायोत्सर्ग- ऐच्छिक-शारीरिक गतिविधियों के निरोध का प्रयत्न है । "200
'आवश्यकनिर्युक्ति' के कर्त्ता आचार्य भद्रबाहु (द्वितीय) ने कहा है कि कायोत्सर्ग दो शब्दों के संयोग से बना है - काया + उत्सर्ग, अर्थात् देह के प्रति आसक्ति का त्याग। आगे लिखा है कि काया शब्द के अपरनाम ग्यारह हैं- काया, शरीर, देह आदि । 201 उसी प्रकार, उत्सर्ग के पर्यायवाची शब्दों की संख्या भी ग्यारह है उत्सर्ग, व्युत्सर्जन, उज्झन, अवकिरण आदि । इसी में कायोत्सर्ग के दो प्रकारों की चर्चा का वर्णन है । 203
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चेष्टा कायोत्सर्ग
आगमन-निगमन की प्रवृत्ति में लगे दोषविशुद्धि के लिए करना उसके 5 प्रकार
दैवसिक का. रात्रिक का. पाक्षिक का. चातुर्मासिक
कायोत्सर्ग
200 जैनसाधना पद्धति में ध्यान
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19 अन्नत्थ ऊससिएणं नीससिएणं खासिएणं छीएणं जंभाइएणं उड्डुएणं वाय - निसग्गेणं भमलीए पितमुच्छाए...। एवमाइएहिं आगारेहिं । । - आवश्यकसूत्र - आगारसूत्र
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अभिनव कायोत्सर्ग
सांवत्सरिक 204
दीर्घकाल तक आत्मचिन्तन के लिए कायोत्सर्ग किया जाता है।
डॉ. सागरमल जैन, पुस्तक से उद्धृत, पृ. 13-14
201 काए सरीर देहे बुंदी य चय उवचए य संघाए । उस्सय समुस्सए वा कलेवरे भत्थ तण पाणू । । - आवश्यक निर्युक्ति, गाथा 1460 202 उत्सग्ग विउस्सरणुज्झणाय अवगिरण छड्डण विवेगा । वज्जण चयणुम्मुअणा परिसाऽण साऽणा चेव । । - वही, गाथा 1465 || 203 सो उस्सग्गो दुव्विहो जिट्ठाए अभिभवे व नायव्वो । भिक्खायरियाइ पढमो उवसग्गभिजुंजणे बिइओ । - वही, गाथा 1466 204 देसिय राइय पक्खिय चाउम्मासे तहेव वरिसेय ।। - आवश्यक निर्युक्ति, गाथा 1515
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संकट आने पर (जैसे- राजा, विप्लव, दुर्भिक्ष आदि के लिए)
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