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________________ 13 से उल्लेख मिलता है कि यह ग्रन्थ जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा विरचित है। वह गाथा निम्नांकित है पंचुत्तरेण गाहासएण झाणस्स यं समक्खायं । जिणभद्दखमासमणेहिं कम्मविसोहीकरणं जइणो ।।26 अर्थात्, एक सौ पांच गाथाओं में ध्यान का जो वर्णन किया गया है, वह जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा मुनि के कर्मों की विशुद्धि के लिए है। अभिधानराजेन्द्रकोश में इस गाथा को ग्रन्थ में समाहित मानकर कहा गया है कि 'झाणज्झयण' (ध्यानशतक) जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण द्वारा रचित है। दूसरे तरीके से इस गाथा का अन्वय इस प्रकार होगा 'जिनमद्दखमासमणेहिं गाहा पंचुत्तरेण सएण जइणो। कम्मविसोही करणं झाणज्झयणं समक्खायं ।।28 इसी गाथा को प्रमाणित मानकर, 'विनयभक्तिसुन्दरचरण ग्रन्थमाला' द्वारा प्रकाशित संस्करण में भी 'जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण' ही इसके रचयिता हैं- इस बात की पुष्टि की गई है। इसी के सन्दर्भ में यहां एक बात और स्पष्टतया दिखाई देती है कि अभिधानराजेन्द्रकोश में गाथा संख्या पैंतालीस के रूप में निम्नलिखित गाथा संकलित 'आणा विजए विवागे, संठाणओ अ नायव्वा। एए चत्तारि पया, झायव्वा धम्मझाणस्स।।29 26 यह गाथा आवश्यकसूत्र (पूर्व भाग पृ. 582-612) के अन्तर्गत ध्यानशतक में तथा वि. भा. सु. च. ग्रन्थमाला द्वारा प्रकाशित उसके स्वतन्त्र संस्करण में नहीं पाई जाती है। यदि यह गाथा मूल ग्रन्थकार द्वारा रची गई होती, तो टीकाकार हरिभद्रसूरि द्वारा जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण के नाम का संकेत अवश्यमेव किया जाता। 7 अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग- 4, पृ. 1670 28 यह कृति आवस्सयनिज्जुत्ति और हरिभद्रीय शिष्याहिता नाम की टीका के साथ आगमोदय समिति ने चार भागों में प्रकाशित की है। उसके पूर्वभाग (पत्र 582 अ-611 ) में आवस्सय की इस नियुक्ति की गाथा 1271 के पश्चात् ये 105 गाथाएं आती हैं। यह झाणज्झयण हरिभद्रीय टीका तथा मलधारी हेमचन्द्रसूरीकृत टिप्पनक के साथ ' विनय-भक्ति-सुन्दर-चरणग्रन्थमाला' के तृतीय पुष्परूप से विक्रम संवत् 1998 में प्रकाशित हुआ है और उसमें इसके कर्ता जिनभद्रगणि क्षमाश्रमण कहे गए हैं। इस कृति की स्वतन्त्र हस्तप्रति मिलती है। 29 अभिधानराजेन्द्रकोश, भाग-4, पृ. 1666 30 जैनयोग के सात ग्रन्थ, पृ.- 34 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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