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________________ 214 लिंग-द्वार - जैनदर्शन में वेद और लिंग में अन्तर माने गए हैं। वेद का सम्बन्ध स्त्री-पुरुष-नंपुसक सम्बन्धी कामवासना से है, जबकि लिंग का सम्बन्ध शारीरिक संरचना से है, किन्तु ध्यानशतक ग्रन्थ के ग्रन्थकार ने लिंगद्वार में मुख्य रूप से व्यक्ति के वासनात्मक-पक्ष को ही लिया है। गाथा क्रमांक नब्बे में शुक्लध्यान के लिंग का निरूपण करते हुए ग्रन्थकार कहते हैं कि अवध, असम्मोह, विवेक और व्युत्सर्ग- ये चार शुक्लध्यान के लिंग हैं। इनसे मुनि के चित्त का शुक्लध्यान में संलग्न होना सूचित होता है।685 कामवासना नौवें गुणस्थान तक सम्भव है। दसवें गुणस्थान में वासना समाप्त हो जाती है, मात्र शारीरिक-संरचना के रूप में लिंग रहता है। श्वेताम्बर-परम्परा इस स्तर पर तीनों लिंगों की सत्ता मानती है, जबकि दिगम्बर-परम्परा मात्र पुरुषलिंग को ही मानती है। शुक्लध्यान के चारों स्तरों का विवेचन पीछे किया जा चुका है। इस लिंगद्वार के अन्तर्गत हमें सिर्फ इतना ही समझ लेना है कि शुक्लध्यान के प्रथम दो चरण में शुभ का भाव रहता है, किन्तु अन्तिम दो में ये भाव-लिंग भी नहीं रहते हैं। धर्मध्यान की स्थिति में पुण्यबन्ध की सम्भावना रहती है, लेकिन शुक्लध्यान के अन्तिम दो चरण में ये सम्भावना नहीं रहती हैं। शुक्लध्यान के अन्तिम दो चरण में एकान्त-निर्जरा की ही स्थिति रहती है, अतः लिंगद्वार की अपेक्षा से यह समझना चाहिए कि शुक्लध्यान के पहले दो चरणों में ही लिंगद्वार की सम्भावना है, अन्तिम दो चरणों में लिंगद्वार सम्भव नहीं है। चाहे हम लिंग शब्द का अर्थ वेश अथवा लक्षण करें, उससे कोई फर्क नहीं, लेकिन यदि लिंग का अर्थ शारीरिक-संरचना या स्त्री-पुरुष-नंपुसकरूप शरीर से हो, तो हमें यह समझना होगा कि श्वेताम्बर-परम्परा के अनुसार तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में तीनों लिंग (स्त्री, पुरुष, नंपुसक) हो सकते हैं, जबकि दिगम्बर-परम्परा के अनुसार तेरहवें और चौदहवें गुणस्थान में मात्र पुरुषलिंग ही होता है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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