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________________ 126 होना, अपनी धूर्तता को बुद्धिमानी समझकर हर्षित होना- ये सभी चौर्यानुबन्धी-रौद्रध्यान हैं। चोर चोरी करके पस्तु लाया हो, उसे सस्ते भाव से लेकर आनन्दित होना, चोर को सहायता देना, उससे चोरी करवाना इत्यादि धनहरण के सब कार्य अदत्तादानानुबन्धी या स्तेयानुबन्धी-रौद्रध्यान है।17 । ज्ञानार्णव में लिखा है कि जो चोरी-विषयक उपदेश देता है, चोरी के कार्य में चतुरता दिखाता है, अर्थात् जिसमें चोरी के विषय में अत्यधिक रुचि होती है, उसे चौर्यानन्द-रौद्रध्यान माना जाता है। 128 आदिपुराण में कहा गया है कि दूसरों के द्रव्य के हरण करने अर्थात् चोरी करने में अपना चित्त लगाना, उसी का चिन्तन करना स्तेयानन्द नाम का तीसरा रौद्रध्यान है। 29 अध्यात्मसार में उपाध्याय यशोविजयजी ने रौद्रध्यान के भेदों का वर्णन करते हुए कहा है कि अतितीव्र क्रोध से व्याकुल व्यक्ति को चोरी करने की बुद्धि होती है। चोरी करने का प्रयोजन द्रव्य-लोलुपता का सूचक है और वही स्तेयानन्द नामक रौद्रध्यान है।130 ध्यानदीपिका'31 में बताया गया है कि चोरी करने के लिए जीवों का घात आदि की चिन्ता द्वारा मन में विक्षोभ रहना, चोरी के लिए जीवों का विनाश करके आनन्दित होना, जानवरों, धन-धान्य और उत्तम स्त्रियों से भरपूर सामग्री को प्राप्त कर खुशी से झूम उठना- ऐसे अध्यवसाय चौर्यानन्द-रौद्रध्यान के प्रतीक हैं। 127 प्रस्तुत सन्दर्भ ध्यानशतक से उद्धृत, अनु.- कन्हैयालाल लोढ़ा, पृ. 74. 128 चौर्योपदेशबाहुल्यं .....................प्रणीतम्।। - ज्ञानार्णव, सर्ग- 21, श्लोक- 24-28. 129 स्तेयानन्दः परद्रव्यहरणे स्मृतियोजनं। भवेत् संरक्षणानन्दः स्मृतिर्थार्जनादिषु ।। - आदिपुराण, पर्व- 21, श्लोक- 57. 1130 चौर्यधी निरपेक्षस्य तीव्रक्रोधाकलस्य च। - अध्यात्मसार- 16/12. 131 चौर्यार्थ जीवघातादि चिन्ताः यस्य मानसम्। कृत्वा तच्चिन्तितार्थं यत्, हृष्टस्तच्चौर्यमुदितम् ।। द्विपदचतुष्पदसारं, धनधान्यवराङ्गनासमाकीर्णम् । वस्तु परकीयमपि, मे स्वाधीनं चौर्यसामर्थ्यात् ।। चौर्य बहुप्रकारं, ग्रामाध्वदेशघातकरणेच्छा। सततमिति चौर्यरौद्रं, भक्त्यवश्यंश्वम्रगमनम्।। - ध्यानदीपिका, प्रकाश- 6, श्लोक- 89- 91. Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003973
Book TitleJinbhadragani Krut Dhyanshatak evam uski Haribhadriya Tika Ek Tulnatmak Adhyayan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorPriyashraddhanjanashreeji
PublisherPriyashraddhanjanashreeji
Publication Year2012
Total Pages495
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari
File Size9 MB
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