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द्वारा जो सत्कार और लाभ की प्राप्ति की प्रार्थना की जाती है, वह निदानजन्य-आर्त्तध्यान है, जो यहां प्राणियों के दुःखरूप दावानल का उत्कृष्ट स्थान है। संक्षेप में कहें, तो यही है कि इष्टभोगों और निष्कण्टक राज्य की प्राप्ति के लिए मनुष्यों की अभिलाषा होती है- वह चौथा निदानजन्य -- आर्त्तध्यान है ।
ध्यानदीपिका ̈ ̈ में लिखा है कि इस लोक में राज्य की प्राप्ति स्वर्ग में इन्द्रपद की प्राप्ति इत्यादि मुझे कब मिलेंगे ? इस प्रकार के विचार वाला भोगार्त्त नामक चौथा आर्त्तध्यान कहा जाता है T
आदिपुरा
ध्यानस्तव",
ध्यानकल्पतरू',
ध्यानविचार - सविवेचन 2,
अध्यात्मसार, भगवती - आराधना 4, ध्यानसार 5 इत्यादि ग्रन्थों में इष्टफल को पाने का संकल्प करना। मनुष्यों द्वारा की धर्माराधना (तप, त्याग, संयम, सेवा) के फलस्वरूप मुझे अमुक व्यक्ति का संयोग हो, या अमुक वस्तु की प्राप्ति हो आदि अभिलाषा करना निदान-चिन्तन है। यह एक प्रकार का अशुभ - ध्यान है, जो अज्ञान या मोक्ष के कारण होता है और निश्चित रूप से आत्मा का अधःपतन करता है ।
इस प्रकार उपर्युक्त ग्रन्थों के अलावा आवश्यकचूर्णि", सम्मतिवृत्ति”, हितोपदेशवृत्ति", प्रशमरतिवृत्ति", अमितगतिश्रावकाचार",
राज्यं सुरेन्द्रता भोगाः, खगेन्द्रत्वं जयश्रियः । कदा मेऽमी भविष्यन्ति, भोगार्त्तं चेति सङ्गतम् ।। 59 निदानं भोगकाङ्क्षोत्थं संक्लिष्टस्यान्यभोगतः । स्मृत्यन्वाहरणं चैव वेदनार्त्तस्य तत्क्षये ।।
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पुंस पीडा विनाशाय स्यादार्त्तं सनिदानमकम् । गृहस्थस्य निदानेन विना साधेस्त्रयं क्वचित् । । ध्यानकल्पतरू, पत्रसंख्या 14, पृ. 11-17. ध्यानविचार - सविवेचन, पृ. 14.
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अध्यात्मसार - 16/4-5.
64 आराधनाविजयोदया टीका, गाथा - 1697.
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ध्यानसार, श्लोक - 60–70, पृ. 18–21.
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ध्यानदीपिका - 5/77-78.
आदिपुराण, पर्व - 21 श्लोक - 33.
ध्यानस्तव, श्लोक - 10.
अमण्णुण्णसंपयोगे......अट्टं झाणं झायति परितप्पंते सिदंते य ।। आवश्यकचूर्णि, श्लोक - 1-4. .. इति संकल्पप्रबन्ध | 163 || - सम्मतिवृत्तौ, का. - 3.
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अमनोज्ञसंप्रयोगानुत्पत्त्यध्यवज्ञानम्...
परिचत्तअट्टरूद्दे ममि समभावभाविए सम्मं ।
वरधम्मसुक्कझाणाण संकमो रूकमो होइ मणगुत्ती । । हितोपदेशवृत्तौ - 484.
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