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________________ अनुमान और आगम तथा प्रकान्तरण से प्रत्यक्ष, स्मृति, प्रत्यभिज्ञा, तर्क, अनुमान और आगम- ऐसे छ: प्रमाणों की चर्चा की है। सम्भवतः हरिभद्र के मत तक जैनदर्शन में इन छ: प्रमाणों की चर्चा नहीं आती। इन छ: प्रमाणों की चर्चा सर्वप्रथम न्यायावतार सिद्धर्षि टीका में ही मिलती है जो हरिभद्र के परवर्ती हैं। न्यायावतार मूल में केवल तीन प्रमाणों की ही चर्चा है- प्रत्यक्ष, अनुमान और आगम, किन्तु आचार्य हरिभद्र अनुयोग द्वारा वृत्ति में - प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम और उपमान – एसे चार प्रमाणों की चर्चा करते हैं। ज्ञातव्य है कि सामयिक-परम्परा में न्याय-दर्शन का अनुसरण करते हुए प्रत्यक्ष, अनुमान, आगम और उपमान की ही चर्चा मिलती है। आचार्य हरिभद्र ने इस सन्दर्भ में आगमिक–परम्परा का ही अनुसरण किया है। नय और निक्षेप – सम्यग्ज्ञान के क्षेत्र में जैनदर्शन में नय और निक्षेप की अवधारणा का भी महत्वपूर्ण स्थान रहा है। वाक्य के अभिप्राय को सम्यक् रूप से समझाने की विधि नय कहलाती है और शब्द में अर्थ का आरोपण किस रूप में है- इसे समझाने की विधि निक्षेप कहलाती है। संक्षेप में कहें, तो शब्द का सम्यक् अर्थ निक्षेप-पद्धति से और वाक्य का सम्यक् अर्थ नय-पद्धति से जाना जाता है। आचार्य हरिभद्र ने नय और निक्षेप की चर्चा भी अपनी नन्दीवृत्ति और अपनी अनुयोगद्वारवृत्ति में की है। यह ज्ञातव्य है कि आचार्य हरिभद्र ने नय की इस चर्चा में परम्परागत् पाँच और सात नयों के अतिरिक्त ज्ञाननय और क्रियानय के स्वरूप का वर्णन भी स्पष्ट किया है और हम पूर्व में निर्देश कर चुके हैं, यह चर्चा ज्ञान और नय की उपयोगिता को सिद्ध करती है। यहाँ यह भी ज्ञातव्य है कि आचार्य हरिभद्र ने नय और निक्षेप-पद्धति का उपयोग अपने शास्त्रवार्ता-समुच्चय में भी किया है और उसमें उन्होनें यह भी बताया है कि कौनसा दर्शन किस नय से सम्बन्धित है। Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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