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________________ णाति णाणं - अवबोहमेत्तं। खओवसमियखाइएण वा भावेण जीवादिपदत्था णज्जति इति णाणं। णज्जति एतम्हि त्ति णाणं , णाणभावे जीवोत्ति।' जानना ज्ञान है। क्षायोपशमिक, अथवा क्षायिकभाव से जीव आदि पदार्थ जाने जाते हैं। जिसके होने पर जानना सम्भव होता है, वह ज्ञान है। ज्ञान एक विशिष्ट प्रकार का बोध है। उसकी सहायता से ही हम अपने जीवन के लक्ष्य को स्थिर कर सकते हैं।' ज्ञान के सम्बन्ध में गीता में कहा गया है, कि - " नहि ज्ञानेन सदृशं पवित्र मिह विद्यते। सर्व कर्माखिलं पार्थ ज्ञान परिसमाप्यते।।" विश्व में ज्ञान के समान कोई पवित्र वस्तु नहीं है। हे पार्थ ! विश्व में जितने भी अच्छे कर्म हैं, वे सभी कर्म ज्ञान में ही परिसमाप्त हो जाते हैं, अर्थात् ज्ञान पाने के बाद सभी कर्म समाप्त हो जाते हैं। जैनदर्शन में ज्ञान का अच्छा महत्व आंका गया है। ज्ञान-गुण के कारण ही आत्मा को अन्य द्रव्यों से अलग बताया गया है। ज्ञान-गुण के उपयोग के बिना वीर्य (शक्ति) का स्फुरण नहीं होता है, अतः वीर्य-गुण को भी ज्ञान की आवश्यकता है।' ‘णाणं पयासओ', अर्थात् ज्ञान द्रव्यस्वरूप का प्रकाशक है। वास्तव में ज्ञान कल्पवृक्ष एवं चिन्तामणिरत्न से भी बढ़कर है। इसकी समानता करने वाला जगत् में अन्य कोई नहीं है। समयसुन्दरजी के अनुसार – ज्ञान संसार में उत्कृष्ट वस्तु है, ज्ञान मुक्ति का दाता है, ज्ञान दीपक है, ज्ञान लोचनों का सुविलास है, ज्ञान लोक और अलोक का प्रकाशक है। 3 नन्दीचूर्णि - जिनदासगणिकृत – पृ. - 13 जैनदर्शन में अतीन्द्रिय ज्ञान - संयमज्योति - ज्ञान का महत्व - पृ. -60 - श्रीमद् भागवद्गीता – श्रीकृष्ण 3 देवचन्द्र चौबीसी सानुवाद - प्र. सज्जनश्री - 1/4 पृ. - 74 + मूलाचार - आचार्य वट्टेकर - 10/8 सज्जनजिनवन्दनविधि - ज्ञानपंचमी वृहत्स्तवन - गाथा 3-41 पूर्वार्द्ध Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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