________________
वे पुनः कहते हैं कि ऋषियों के उपदेश की भिन्नता उपासकों की प्रकृतिगत भिन्नता अथवा देशकालगत भिन्नता के आधार पर होती है, तत्वतः वह एक ही होती है।
डॉ. सागरमल जैन के अनुसार वस्तुतः, विषय-वासनाओं से आक्रान्त लोगों द्वारा ऋषियों की साधनागत विविधता के आधार पर स्वयं धर्म-साधना की उपादेयता पर कोई प्रश्न-चिह्न लगाना अनुचित ही है।
आचार्य हरिभद्र के विचारों से यह स्पष्ट है कि धर्म-साधना के क्षेत्र में बाह्य-आचारगत की विविधता अधिक महत्वपूर्ण नहीं है।
63 यद्वा तत्तत्रयापेक्षा तत्कालादि नियोगतः। ऋषिभ्यों देशनाचित्रा तन्मूलेषाऽपि तत्वतः-योगदृष्टि समुच्चय, 130 64 पंचाशक प्रकरण भूमिता- पृ. xxxiv
64
Jain Education International
For Personal & Private Use Only
www.jainelibrary.org