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द्वितीय अध्याय : आचार्य हरिभद्र की दृष्टि में मोक्षमार्ग
(अ) पंचाशक प्रकरण में मोक्षमार्ग के चार अंग1. सम्यग्दर्शन
सम्यग्ज्ञान
3. सम्यक्-चारित्र
सम्यक्-तप (ब) सम्यग्दर्शन का अन्तरंग एवं बाह्य स्वरूप -
के कर्त्तव्य 2. चैत्यवन्दनविधि 3. पूजाविधि -द्रव्यपूजा और भावपूजा, द्रव्यपूजा क्यों करणीय है ? 4. प्रत्याख्यानविधि-प्रत्याख्यान की आवश्यकता
स्तवनविधि 6. जिनभवन निर्माणविधि-जिनभवन निर्माण में होने वाली हिंसा के पक्ष में
हरिभद्र तर्क 7. जिनबिम्ब प्रतिष्ठाविधि-प्रतिष्ठाविधि के आगमिक एवं लौकिक आधार 8. जिनयात्रा-विधि – जिनयात्रा और जैनधर्म की प्रभावना का प्रश्न (स) सम्यग्ज्ञान का स्वरूप - 1. पंचज्ञान 2. प्रमाण, नय निक्षेप 3. भेद-विज्ञान (द) सम्यक्-चरित्र - 1. मुनिधर्म 2. श्रावक धर्म (इ) तुलनात्मक एवं समीक्षात्मक अध्ययन
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