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________________ अनुष्ठानूपूर्वक यह तप करना चाहिए। मतान्तर से जिस माह की तिथि को केवलज्ञान की उत्पत्ति हुई थी, उसी माह की तिथि को यह तप करना चाहिए। यह तप निम्नवत है- पार्श्वनाथ, ऋषभदेव, मल्लिनाथ और नेमिनाथ। इन चार तीर्थंकरों को अट्ठम-तप के अन्त में केवलज्ञान हुआ था। वासुपूज्य को उपवास में केवलज्ञान उत्पन्न हुआ और शेष उन्नीस तीर्थंकरों को छट्ठ-तप के अन्त में केवलज्ञान, केवलदर्शन उत्पन्न हुआ था। आचार्य हरिभद्र इस तप की महिमा को बताते हुए कहते हैं कि ऋषभादि चौबीस तीर्थंकरों ने इस तप में ही केवलज्ञान प्राप्त किया था, इसलिए यह तप करने वाला तपस्वी शीघ्र केवलज्ञान को प्राप्त करता है। आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत् तपोविधि-पंचाशक की पन्द्रहवीं एवं सोलहवीं गाथा में तीर्थंकर मोक्षगमन-तप की चर्चा करते हुए कहा हैं अचिन्त्य शक्ति-सम्पन्न तीर्थंकरों ने जिस तप के द्वारा मोक्ष प्राप्त किया था, वह तप तीर्थकर मोक्षगमन-तप कहलाता है। वह इस प्रकार है- प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव ने निरन्तर छ: उपवास के साथ मोक्ष प्राप्त किया और अन्तिम तीर्थंकर भगवान् महावीर ने छट्ठ (बेला) तप से मोक्ष प्राप्त किया और शेष बाईस तीर्थंकरों ने मासक्षमण (तीस उपवास) की तपश्चर्या से मोक्ष प्राप्त किया था। इस प्रकार का तप करने से मोक्ष का निश्चय होता है, अर्थात् ऐसे तप करने वाला शीघ्र मोक्षगामी होता है। इस तप को अन्तक्रिया-तप भी कहते हैं, क्योंकि मोक्षप्राप्ति को निर्वाण भी कहते हैं और निर्वाण की क्रिया के पश्चात् जीव अधिक अक्रिय हो जाता है और अक्रिय होने से सभी क्रियाओं का अन्त हो जाता है, इसलिए इसे अन्तक्रिया-तप भी कहते हैं। तीर्थकरों का निर्वाणस्थल- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत तपोविधि-पंचाशक की सत्रहवीं गाथा में तीर्थंकरों के निर्वाणस्थलों की भी चर्चा की है। भगवान् ऋषभदेव का निर्वाणस्थल अष्टापद तीर्थ है। इसे वर्तमान में हिमालय कैलाशगिरि के नाम से जाना जाता है। 'पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 19/15, 16 - पृ. - 339, 340 2 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि-19/17 - पृ. - 340 588 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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