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________________ पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत तपोविधि-पंचाशक की दसवीं गाथा में पारणे के द्रव्य को बताते हुए कहते हैं - भगवान् ऋषभदेव को पारणे में इक्षु-रस प्राप्त हुआ था और शेष तेईस तीर्थंकरों को पारणे में अमृततुल्य श्रेष्ठ परमान्न (खीर) की प्राप्ति हुई थी। दीक्षा के पश्चात् तीर्थंकरों को भिक्षा की प्राप्ति कब हुई- इसकी भी चर्चा आचार्य हरिभद्र पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत तपोविधि-पंचाशक की ग्यारहवीं गाथा में की हैं इस अवसर्पिणी के प्रथम तीर्थंकर श्री ऋषभदेव को बारह मास पश्चात् प्रथम भिक्षा मिली एवं शेष तेईस तीर्थंकरों को दीक्षा के दूसरे दिन प्रथम भिक्षा की प्राप्ति हुई थी। प्रश्न उपस्थित होता है कि दीक्षातप करते हुए ऋषभदेव का पारणा बारह मास पश्चात् हुआ, तो क्या हमें भी बारह महीने बाद ही पारणा करना चाहिए ? उत्तर- शक्ति हो, तो बारह महीने उपवास करना चाहिए, अन्यथा दो दिन उपवास, एक दिन पारणा, अथवा एक दिन उपवास और एक दिन पारणा, दो वर्ष तक इसी प्रकार चार सौ उपवासपूर्वक यह तप करके अक्षय तृतीया के दिन इक्षुरस से पारणा करना चाहिए। वर्तमान में इस तप का प्रचलन बहुत है, जो वर्षीतप के नाम से प्रसिद्ध है। तीर्थकर-ज्ञानोत्पत्ति-तप- आचार्य हरिभद्र पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत तपोविधि-पंचाशक की बारहवीं से चौदहवीं तक की गाथाओं में तीर्थंकर-केवलज्ञानोत्पत्ति-तप की विधि का विवेचन करते हुए कहते हैं यह तप भी श्रेष्ठ होता है। वैसे सारे तप श्रेष्ठ होते हैं, लेकिन कई तप विशेष श्रेष्ठ होते हैं। उसमें मुख्यतः कारण यह है कि कई तप बड़े दुष्कर होते हैं, कई तप तीर्थंकरों से जुड़े हुए होते हैं, कई तप कर्म-निर्जरा शीघ्र करते हैं, इसी कारण तपों के साथ श्रेष्ठ शब्द लगा दिया जाता है। इस तप को भी विधि के अनुसार ही करना चाहिए। ऋषभादि चौबीस तीर्थंकरों के क्रम से गुरु की आज्ञानुसार परिशुद्ध और निरवद्य पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 19/10 -पृ. - 338 'पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 19/11 - पृ. - 338 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 19/12 से 14 - पृ. - 339 587 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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