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________________ वासुपूज्य स्वामी का निर्वाणस्थल चम्पापुरी है, जो बिहार प्रदेश के अन्तर्गत नेमिनाथ भगवान् का निर्वाणस्थल गिरनार तीर्थ है, जिसे उज्जयंतगिरि, रेवतगिरि भी कहते हैं। यह तीर्थ गुजरात में है और गिरनार के नाम से जाना जाता है। महावीर स्वामी का निर्वाणस्थल पावापुरी तीर्थ है। यह तीर्थ बिहार प्रदेश में राजगृह के निकट माना जाता है तथा शेष बीस तीर्थंकरों का निर्वाणस्थल सम्मेतशिखर तीर्थ है, जो मधुवन के नाम से भी प्रसिद्ध है। यह तीर्थ पार्श्वनाथ हिल स्टेशन के निकट है। यह तीर्थ वर्तमान में झारखण्ड प्रदेश में है। चान्द्रायण-तप- चान्द्रायण-तप चन्द्रमा की कलाओं के घटने व बढ़ने पर आधारित रहता है। इसे भेद सहित स्पष्ट करते हुए आचार्य हरिभद्र पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत तपोविधि-पंचाशक की अठारहवीं गाथा में कहते हैं __ अनुक्रम से और विपरीत क्रम से भिक्षा की दत्तियों, उपवासों या कवलों (भोजन के ग्रास) की संख्या में वृद्धि और कमी करने से चान्द्रायण-तप होता है। गाथा में प्रयुक्त आदि शब्द से आगम में उल्लेखित दूसरे तप, जैसे- भद्र, महाभद्र, सर्वतोभद्र, रत्नावली, कनकावली, एकावली, लघुसिंहनिष्क्रीडित, महासिंहनिष्क्रीडित, वर्द्धमानआयम्बिल, गुणरत्न-संवत्सर, सप्तसप्तमिका आदि चार प्रतिमा और कल्याण आदि तप ग्रहण करना चाहिए। __चान्द्रायण-तप के दो भेद हैं- (1) यवमध्या और (2) वज्रमध्या। आचार्य हरिभद्र पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत तपोविधि-पंचाशक की उन्नीसवीं एवं बीसवीं गाथा में' यवमध्या और वज्रमध्या–प्रतिमातप का प्रतिपादन करते हुए कहते हैं(1) यवमध्या- शुक्लपक्ष में एकम के दिन भिक्षा में एक कौर (ग्रास) आहार लेना, द्वितीया को दो कौर, तृतीया. को तीन कौर- इस प्रकार क्रमशः एक-एक दिन बढ़ाकर पूर्णिमा के दिन पन्द्रह कौर के बराबर आहार लेना, पुनः पूर्णिमा के पश्चात् एकम को चौदह कौर का आहार लेना, इस तरह प्रत्येक दिन भिक्षा का एक कौर घटाते रहना और अमावस्या के दिन केवल एक ग्रास का आहार लेना, यह यवमध्या-प्रतिमातप है। 1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 19/19, 20 - पृ. - 341 589 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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