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मन-विनय
विनय करना मन - विनय है ।
वचन-विनय
का बहुमान करना वचन - विनय है ।
काय-विनय
अप्रशस्त वृत्तियों का मन से संवर करना, आचार्य आदिका मन से
अप्रशस्त वचनों का निरोध करना, प्रशस्त वचनों से आचार्य आदि
अप्रशस्त वृत्तियों का अवरोध कर प्रशस्त वृत्तियों से आचार्य आदि
की सेवा, प्रशंसा करना काय-विनय है ।
उपचार- विनय
के सात भेद हैं
1. ज्ञान - प्राप्ति या आभ्यासन
बैठना ।
विनय - व्यवहार का पालन करना उपचार - विनय
विशेष आदर करना ।
5. दुःखार्त्तगवेषणा -
6. देशकाल - ज्ञान
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2. छन्दोऽनुवर्त्तन - आचार्य की इच्छानुसार वर्त्तन करना ।
3. कृतप्रतिकृति – कर्मनिर्जरा आदि की भावना से आचार्य की सेवा करना ।
4. कारितनिमित्तकरणे -
समझकर उनकी सेवा करना ।
| उपचार - विनय
आज्ञा-पालन की इच्छा से सदा आचार्यादि के पास
आचार्य के द्वारा श्रुतज्ञानादि देने हेतु उपकार मानकर उनका
रोग आदि दुःखों को दूर करने का उपाय करना । देश - काल के अनुसार आचार्यादि की आवश्यकताओं को
7. सर्वत्रानुमति -
वैयावृत्य - इसका अर्थ है- सेवा ।
संयमी, तपस्वी, ग्लान, पीड़ित आदि मुनियों को आहार, औषधि आदि लाकर देना, उनकी शारीरिक-परिचर्या करना वैयावृत्य - तप है। शास्त्रों में भी बताया हैदस प्रकार के मुनियों की सेवा करना । आचार्य, उपाध्याय, स्थविर, तपस्वी, ग्लान, शैक्ष, साधर्मिक, कुल, गण और संघ- इन दस की वैयावृत्य (सेवा) करना चाहिए । स्वाध्याय स्व + अध्याय, अर्थात् स्व का अध्ययन करना स्वाध्याय है।
कोई भी कार्य आचार्यादि की अनुमति से ही करना ।
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