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अनुसार चलना, गुरु के आने पर खड़े होना, उन्हें बैठने के लिए आसन देना, गुरु आदि की सेवा करना आदि विनय-तप है।
___ विनय के सात भेदों का वर्णन इस प्रकार किया है1. ज्ञान, 2. दर्शन, 3. चारित्र, 4. मन, 5. वचन, 6. काय और 7. उपचार । ज्ञान-विनय- मति, श्रुत आदि पांच ज्ञान एवं ज्ञानी पुरुषों के प्रति बहुमान, आगम में विहित अर्थों का चिन्तन, गुरु के पास अध्ययन आदि ज्ञान-विनय है। दर्शन-विनय- जो दर्शन-गुण में अधिक है, उनका बहुमान करना दर्शन-विनय है। दर्शन-विनय के दो भेद हैं- शुश्रुषा और अनाशातना। शुश्रुषा के दस भेद हैं1. सत्कार - स्तुति आदिकरना । 2. अभ्युत्थान - कोई बड़ा आए, तो खड़े हो जाना आदि। 3. सम्मान - वस्त्रादि देना। 4. आसनाभिग्रह – कोई बड़ा आए, तो बैठने के लिए आसनादि देना। 5. आसनानुप्रदान - उनकी इच्छानुसार आसन को सीनान्तरित करना। 6. कृतिकर्म - वन्दन करना। 7. अंजलिग्रह - हाथ जोड़कर सिर से लगाना। 8. आगच्छदनुगम – कोई बड़ा आए, तो आगे बढ़कर अगवानी करना। 9. स्थितपर्युपासन - बैठे हों, तो पैर दबाना आदि। 10. गच्छदनुगमन - जाने लगे, तो कुछ दूर तक साथ जाना। अनाशातना-विनय के निम्न पन्द्रह भेद हैं - 1. तीर्थंकर, 2. धर्म, 3. आचार्य, 4. उपाध्याय, 5. स्थविर, 6. कुल, 7. गण, 8. संघ, 9. साम्भोगिक, 10. क्रियावान्, अर्थात् श्रद्धाशील चरित्रवान् व्यक्ति और पांच ज्ञानों के धारकइन पन्द्रह की आशातना का त्याग कर भक्ति, सम्मान और प्रशंसापूर्वक उनका विनय करना। चारित्र-विनय- चारित्र-विनय के अन्तर्गत सामायिक आदि पांच चारित्रों की मन से श्रद्धा करना, काया से पालना, वचन से परूपणा करना- ये तीन भेद हैं।
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