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________________ अन्य मत वालों का तर्क है कि पर्याप्त आहार आदि के अभाव में मन स्थिर नहीं रहेगा, संयम का लाभ नहीं होगा, अतः इतनी कठिन साधना का विधान नहीं बताना चाहिए। मन सधने के बाद कोई भी साधना कठिन नहीं है, अथवा जिस बात को मन स्वीकार कर ले, फिर वह साधना उसके लिए कठिन नहीं है। सर्कस में शेर हाथी का सामना करते हैं व उनके सामने निर्भीक होकर खड़े हो जाते हैं। इसमें क्या कारण है ? मन इस कार्य को करने के लिए स्वीकार कर लेता है। वे मन को साध लेते हैं। मैली विद्या सीखने के लिए लोग श्मशान में जाकर शक्ति की साधना करते हैं, नदियों के किनारे जाकर वर्षों-वर्ष साधना करते हैं, पहाड़ों-गुफाओं में साधना करते हैं, जहाँ इस कठिनतम साधना में कोई न कोई आकांक्षा होती है, परन्तु आध्यात्मिक-साधना में कोई आकांक्षा नहीं होती है, अतः हर दृष्टिकोण से प्रतिमावहन-साधना सिद्धि को पाने के लिए पूर्ण रूप से उपर्युक्त है। अन्य आचार्य के मत का समाधान करते हुए आचार्य हरिभद्र भिक्षुप्रतिमा-कल्पविधि-पंचाशक की पच्चीसवीं एवं छब्बीसवीं गाथाओं में स्पष्ट करते हैं यह प्रतिमाकल्प सर्वसाधारण साधुओं के लिए नहीं है। यह विशेष साधुओं के लिए ही है- ऐसा जानना चाहिए, क्योंकि दशपूर्वधर आदि के लिए यह प्रतिमाकल्प वर्जित है। दशपूर्वधर आदि गच्छ में रहकर ही उपकारक होते हैं, इसलिए प्रतिमाकल्प में गुरु-लाघव आदि की विचारणा नहीं हुई है- यह कहना अनुचित है। प्रतिमाकल्प प्रस्तुत रोग की चिकित्सा करते समय उत्पन्न उससे अधिक तीव्र रोग की चिकित्सा करने के समान है, जैसे- किसी पुरुष के एक रोग की चिकित्सा हो रही हो, उससे उस रोग से भी अधिक कष्टकारी कोई दूसरा रोग उत्पन्न हो जाए, तो पहले उसकी चिकित्सा करना चाहिए, उसी प्रकार जिसने स्थविरकल्प के सभी अनुष्ठान कर लिए हैं, उसके लिए ही प्रतिमाकल्प स्वीकार करना अधिक उपयोगी है। ऐसे साधु के लिए प्रतिमा-कल्प स्वीकार करना अधिक लाभकारी है और गच्छवास कम लाभकारी (लघु) है। जिसने स्थविरकल्प के सभी अनुष्ठान पूर्ण नहीं किए हैं, उसके लिए | पंचाशक-प्रकरण - आ. हरिभद्रसूरि- 18/25, 26 - पृ. - 323 565 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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