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________________ उपाय पूछा और उस हेतु औषधि देने को कहा। वैद्य राजा की आज्ञा के अनुसार अपनी-अपनी दवा बनाकर लाए। राजा के द्वारा दवाओं का गुण पूछने पर उन वैद्यों ने क्रमशः इस प्रकार कहा- यह पहले प्रकार की औषधि ऐसी है कि यदि रोग हो, तो उसे दूर करती है और न हो, तो नया उत्पन्न करती है। दूसरे प्रकार की औषधि रोग हो, तो उसे दूर करती है, किन्तु रोग न हो, तो नया रोग उत्पन्न नहीं करती। तीसरे प्रकार की औषधि रोग हो, तो उसे दूर करती है और रोग न हो, तो शरीर को पुष्ट करती है, अर्थात् रोग न हो, तो नया रोग उत्पन्न नहीं करती है, अपितु रसायन का कार्य करती है। दोष न लगा हो, तो भी तीसरी औषधि की तरह स्थितकल्प का पालन किया जाए, क्योंकि यह शुभभाव-रूप होने के कारण चारित्ररूपी शरीर के लिए रसायन के समान पोषक होता है। कल्प के दस प्रकार- आचार्य हरिभद्र ने कल्पविधि-पंचाशक की छठवीं गाथा में कल्प के दस नाम बताए हैं, जो निम्न हैं1. आचेलक्य 2. औद्देशिक 3. शय्यातरपिण्ड 4. राजपिण्ड 5. कृतिकर्म 6. व्रत 7. ज्येष्ठ 8. प्रतिक्रमण 9. मासकल्प और 10. पर्युषणाकल्प। 1. आचेलक्य- वस्त्र का अभाव होने पर भी वस्त्र की इच्छा न रखना। 2. औद्देशिक- साधु के लिए बनाया हुआ भोजन नहीं लेना। 3. शय्यातरपिण्ड- वसति देने वाले के घर का आहार पानी नहीं लेना। 4. राजपिण्ड- राजा के लिए बना हुआ भोजन नहीं लेना। 5. कृतिकर्म- दीक्षा में लघु साधु बड़े साधुओं. की वन्दना करें। 6. व्रत पंच-महाव्रत का पालन करना। 7. ज्येष्ठ- पुरुष प्रधान हैं, अतः बड़ी साध्वी भी साधु को वंदन करें। 8. प्रतिक्रमण- अतिचार लगे या न लगे, प्रातःकाल और सायंकाल प्रतिक्रमण करना चाहिए। 532 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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