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________________ उत्तराध्ययन-सूत्र के अनुसार'आलोचना आदि प्रायश्चित्त के दस प्रकार हैं। दशवैकालिक की अगस्त्यसिंह की चूर्णि के अनुसार भी प्रायश्चित्त के आलोचना आदि दस प्रकार ही हैं। . तत्त्वार्थ-सूत्र के अनुसार, प्रायश्चित्त के नौ भेद होते हैं। आठ भेद तो प्रायश्चित्त पंचाशक के अनुसार ही हैं, किन्तु मूल प्रायश्चित्त का विधान तत्त्वार्थ-सूत्र में नहीं है, उसके पश्चात् भी परिहार और उपस्थापन हैं। ऐसा अनुमान है कि मूल प्रायश्चित्त को अनवस्थाप्य और उपस्थापना-प्रायश्चित्त में ही सम्मिलित कर लिया गया होगा। जीतकल्प के अनुसार, प्रायश्चित्त के आलोचना आदि दस भेद हैं, जो पंचाशक के अनुसार ही हैं। ___ मूलाचार-वृत्ति के अनुसार, प्रायश्चित्त के दस भेद इस प्रकार हैं1.आलोचना 2. प्रतिक्रमण 3. तदुभय 4. विवेक 5. व्युत्सर्ग 6. तप 7. छेद 8. मूल 9. परिहार और 10. श्रद्धान। परिहार- पारंचिक का ही रूप है। श्रद्धान- मिथ्यात्व में मन चला जाए, तब उससे वापस करना श्रद्धान नाम का प्रायश्चित्त है। ये नौ प्रायश्चित्त पंचाशक के अनुसार ही हैं, अन्तर केवल श्रद्धान एवं अनुसंस्थापन में है। प्रायश्चित्त शब्द की निरुक्ति- आचार्य हरिभद्र प्रायश्चित्तविधि-पंचाशक की तीसरी गाथा में' प्रायश्चित्त शब्द की व्याख्या की है, जिसे इस प्रकार समझें उत्तराध्ययन - म. महावीर स्वामी- 30/31 दशवैकालिक अ.चू - अगस्त्यसिंह - पृ. - 14 तत्त्वार्थ-सूत्र - आ. उमास्वाति-9/21 जीतकल्पसूत्र – जिनभद्रगणिश्रमाश्रमण-2 मूलाचारवृत्ति - आ. वसुनन्दी - गाथा- 1 आलेयण पडिक्मणं उभय विवेगो तद्या विउसग्गो तव छेदो मलंपिय परिहारो चे सद्दहणा - गाथा- 1033 -पृ. - 188 1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 16/3 - पृ. - 277 514 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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