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________________ इस प्रश्न का समर्थन करके समाधान दिया, तो पुनः प्रश्न किया गया कि निर्दोष भिक्षा इतनी दुष्कर है, तो साधुजन इसके लिए इतना प्रयत्न क्यों करते हैं ? आचार्य हरिभद्र ने पुनः इस प्रश्न का सही उत्तर देते हुए कहा है साध्वाचार का फल मोक्ष है। यह मोक्ष कठिन प्रयत्न किए बिना नहीं मिलता है, इसलिए साधु इसके लिए प्रयत्न करते हैं। शुद्ध-अशुद्ध भिक्षाग्रहण करने से सम्बन्धित कर्मवादियों के मत का समाधान करते हुए आचार्य हरिभद्र पिण्डविधानविधि पंचाशक की चंवालीसवीं गाथा में स्पष्ट करते आप्तवचन के अनुसार प्रवृत्ति करते हुए भी ज्ञानावरणीयादि कर्मों के प्रभाव के कारण यदि अशुद्ध भोजन का ग्रहण हो जाए, तो भी वह निर्दोष ही माना जाता है, किन्तु आप्तवचन के अनुसार आचरण नहीं करने वाला साधु यदि अशुद्ध आहार ग्रहण करे, तो उसका वह कार्य निर्दोष नहीं माना जाएगा, क्योंकि आहार की निर्दोषता में आप्तवचन का योग निमित्त-कारण ही होता है। भोग में प्रवर्त्तमान व्यक्ति का कर्म विचित्र होता है। यह पुण्यानुबंधी और पापानुबंधी के भेद से दो प्रकार का होता है। इनमें से पुण्यानुबंधी कर्म से भोग में प्रवृत्ति की जाए, या कोई करे, तो भी वह पुण्यरूप परिणाम-विशेष घटित होने से दोष नहीं लगता है। ___ प्रस्तुत विषय पर यह प्रश्न उपस्थित होता है कि आप्त वचनानुसार चलने वाला साधक अशुद्ध आहार ग्रहण करता है, तो दोष नहीं है। यदि इसके विपरीत चलने वाला साधक अशुद्ध आहार ग्रहण करता है, तो वह दूषित ही है, जबकि दोनों में ज्ञानावरणीयादि कर्मों का कारण है, ऐसा क्यों ? समाधान - दोनों में ज्ञानावरणीयादि कर्म कारण है। आहार दोनों का दोषी है, परन्तु आप्तवचनानुसार चलने वाला साधक दोषी आहार ज्ञात होने पर भूल का पश्चाताप करता है, अनासक्त रहता है, अपनी गलती का अहसास करता है, मिथ्या दुष्कृत्य करता है, 2 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 13/44 - पृ. सं. - 237 475 Jain Education International For Personal & Private Use Only For Personal & Private www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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