SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 475
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ से श्रमण को आहार ग्रहण के समय दोष लगते हैं, जिन्हें समझकर आहार ग्रहण करे, जिससे इन दोषों से स्वंय को बचाकर संयम-यात्रा का पालन शुद्धरीति से कर सके। उद्गम-दोष सोलह, उत्पादन-दोष सोलह और ऐषणा-दोष दस- इस प्रकार से बंयालीस दोष होते हैं। आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत अध्याय की चौथी गाथा में' उद्गम शब्द की व्याख्या करते हुए कहा हैउद्गम का अर्थ- उद्गम शब्द का अर्थ है- उत्पत्ति, अर्थात् आहार बनाने आदि में लगने वाले दोषों को उद्गम-दोष कहा गया है। साधु के लिए आहार बनाना, रखना, उद्घाटित करना आदि आहार के उद्गम-दोष हैं। उद्गम के पर्यायवाची नाम हैं- उद्गम, प्रसूति, प्रभव आदि। इन सबका एक ही अर्थ हैउत्पन्न होना। उद्गम के सोलह दोष- आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत पिण्डविधानविधि के अन्तर्गत पांचवीं एवं छठवीं गाथाओं में सर्वप्रथम भिक्षाचर्या के उद्गम-दोषों का उल्लेख किया है, जो इस प्रकार है1. आघाकर्म 2. औद्देशिक 3. पूतिकर्म 4. मिश्रजात 5. स्थापना 6. प्राभृतिका 7. प्रादुष्कर 8. क्रीत 9. अपमित्य 10. परावर्तित 11. अभिहृत 12. उद्भिन्न 13. मालापहृत 14. आच्छेद 15. अनिसृष्ट और 16. अध्यवपूरक- ये सोलह उद्गम के दोष हैं। __ये गृहस्थ द्वारा लगने वाले दोष हैं, अर्थात् साधु को लक्ष्य में रखकर दाता के द्वारा किए जाने वाले ये दोष हैं, जिन्हें उद्गम-दोष कहते हैं। । पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 13/4 - पृ. सं. - 221 2 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 13/5, 6 - पृ. सं. - 222 3 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 13/7 - पृ. सं. - 223 455 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy