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श्रमणसर्वस्व के अनुसार, इस परम पवित्र साधु-सामाचारी का विशुद्ध पालने करने वाले साधु-साध्वी अनेक भवों में संचित ज्ञानावरणीयादि कर्मों का नाश करते हैं।
___ आवश्यकनियुक्ति में भी दशविध सामाचारी का वर्णन प्राप्त है, जो पंचाशक के तुल्य है।
प्रवचन-सारोद्धार में भी सामाचारी का प्रतिपादन पंचाशक के अनुसार ही है।
धर्मसंग्रह-सारोद्धार में भी दशविध सामाचारी की व्याख्या पंचाशक के अनुसार ही है।
श्रमणसर्वस्व में भी दशविध सामाचारी-स्वरूप का प्रतिपादन प्राप्त है, सामाचारी का क्रम पंचाशक के अनुरूप ही है, परन्तु छन्दना-सामाचारी के भावार्थ में अन्तर है। इसमें छन्दना-सामाचारी का अर्थ किया है कि साधु गुरु-आज्ञा में विचरण करें, क्योंकि स्वतन्त्रता साधुजीवन को नष्ट करने के कारण में निमित्तभूत है, जो पंचाशक से भिन्न अर्थ रखता है। अन्य सभी ग्रन्थों में छन्दना-सामाचारी का अर्थ पंचाशक के समान है, परन्तु छन्द शब्द के अर्थ से प्रतीत होता है कि छन्दना-सामाचारी का भावार्थ श्रमणसर्वस्व के अनुसार भी सही है, क्योंकि छन्द शब्द के कईं अर्थ निकलते हैं, जैसेनिमन्त्रण देना, अनुज्ञा देना, चाहना, सम्मति देना, इच्छा, अभिलाषा, अधीनता, स्वछन्दता आदि', अतः इस अपेक्षा से छन्दना-सामाचारी का भावार्थ यहाँ भी भिन्न-भिन्न हो सकता
छन्दना और निमन्त्रण-सामाचारी का अर्थस्वरूप समान माना गया है, अर्थात् परस्पर दोनों का सम्बन्ध आहार, वस्त्रादि-सेवा से है। छन्दना से तात्पर्य है
3 प्रवचन-सारोद्धार - आ. नेमीचन्द्र - भाग-1 - गाथा- 760-761 - पृ. - 419 + धर्मसंग्रह-सारोद्धार - महो. मानविजयजी-भाग-2 - गाथा- 104, 105 5 श्रमणसर्वस्व - प्र. सज्जनश्री - दशविध-सामाचारी - प्र. - 28 6 संक्षिप्त प्राकृतिहिन्दी कोश 'छ वर्ग' - सम्पादक- डॉ. के. आर. चन्द्र - पृ. - 329
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