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________________ आहार लाने के बाद अन्य मुनियों को विनती करना, जबकि निमन्त्रण का क्रम इससे भिन्न है। इसमें, मैं आपके लिए आहारादि लेकर आऊंगा- यह कहकर आहारादि लाता है, अतः इन दोनों का यह क्रम पूर्वापर सही प्रतीत नहीं होता है कि आहार ग्रहण हेतु विनती पूर्व में करें व पश्चात् आहार लेकर आऊंगा- यह निमन्त्रण दे, अतः पहले निमन्त्रण-सामाचारी होना चाहिए, फिर छन्दना-सामाचारी होना चाहिए। श्रमणेसर्वस्व के अनुसार क्रम सही प्रतीत होता है, क्योंकि छन्दना का अर्थ गुरुआज्ञा में विचरण करने का है एवं निमन्त्रण का अर्थ साधुओं को आहार हेतु विनती करना है। सामाचारी-पालन नहीं करने का परिणाम- आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण के अन्तर्गत साधुसामाचारीविधि-पंचाशक की अन्तिम पचासवीं गाथा में प्रतिपादित किया समता जो साधु महापुरुषों द्वारा निर्दिष्ट शुद्ध सामाचारी का सम्यक्तया पालन नहीं करते हैं और अपने आग्रहों से ग्रस्त होकर लोक में विहार करते हैं, उनके वे अनुष्ठान संसार-सागर से मुक्त होने में सहयोगी नहीं बनते हैं। दशविध सामाचारी का सम्यक् प्रकार से परिपालन करने वाले निम्न विशेषताओं को प्राप्त करते हैंइच्छाकार-सामाचारी से विनम्रता मिथ्याकार-सामाचारी से तथाकार–सामाचारी से सरलता आवस्सही-सामाचारी से एकाग्रता नैषेधिकी-सामाचारी से गुरु के प्रति आदरभाव पृच्छना-सामाचारी से अहम् का विसर्जन प्रतिपृच्छना-सामाचारी से नम्रता, सरलता, श्रमशीलता छन्दना-सामाचारी से अतिथि सत्कार के भाव निमन्त्रण-सामाचारी से सेवा के भाव 1 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 12/50 - पृ. - 220 452 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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