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________________ ? प्रस्तुत प्रश्न का समाधान आचार्य हरिभद्र ने पंचाशक-प्रकरण की साधुसामाचारीविधि पंचाशक की इकतालीसवीं गाथा में किया है ___ गुरु से पूछे बिना, गुरु को छोड़कर अन्य साधुओं को निमन्त्रण दे दिया हो, तो आहार लाने के पहले गुरु से अवश्य पूछ लेना चाहिए। इससे बाकी के साधुओं को किया गया निमन्त्रण निर्दोष हो जाता है। प्रश्न उपस्थित किया गया कि यदि निमन्त्रण के बाद गुरु से पूछने पर वे यदि लाने की आज्ञा न दें, तो निमन्त्रण निष्फल हो जाएगा, ऐसी स्थिति में हम निर्दोष कैसे रहेंगे ? समाधान- आहारादि दानरूप वैयावृत्य बाह्य से नहीं करने पर भी भाव से किया है। पुनः, गुर्वाज्ञा पालन में भी महान् लाभ है। गुरु भी अनावश्यक मना नहीं करेंगे, वे महत्वपूर्ण कारण होने पर ही मना करेंगे, इसलिए निमन्त्रण के पश्चात् भी गुरु से पूछने से वह निमन्त्रण निर्दोष हो जाता है। पुनः, प्रश्न उपस्थित होता है कि गुरु को पूछने पर यदि गुरु ने मना किया हो, तो जिन मुनियों को आहार हेतु निमन्त्रण दिया गया, उनका क्या होगा ? | समाधान- जिन्हें निमन्त्रण दिया है, उन्हें गुरु-आज्ञा बता देना चाहिए कि गुरु ने मुझे आहार लाने के लिए मना कर दिया, अतः मुझे क्षमा करें। 10. उपसम्पदा-सामाचारी- ज्ञान, विनय, चारित्र और तप आदि की वृद्धि, रक्षण, पालन और विशेष संवर्द्धन के लिए अन्य गच्छ के आचार्य की निश्रास्वीकृत करना उपसम्पदा कहलाती है, अर्थात् स्वगच्छ में विशिष्ट ज्ञान, ध्यान, योग आदि प्रक्रिया कराने के लिए कोई न हो, तो ही अन्य गच्छ में जाना चाहिए, उपसम्पदा लेनी चाहिए, अन्यथा नहीं। यदि अनबन के कारण, स्वेच्छा से, स्वछंदता से जाते हों, तो यह अनुचित है, अतः विशिष्ट साधना के लिए स्वगच्छ का त्याग कर उपसम्पदा ग्रहण करें, अन्यथा स्वगच्छ का त्याग नहीं करना चाहिए। यदि उपसम्पदा ग्रहण की हो, तो विशिष्ट साधना के | पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 12/41 - पृ. - 215 445 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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