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________________ ज्ञान आदि से सम्बन्धित कार्य गुरु, अथवा गुरु के समान स्थविर आदि से पूछकर करना आपृच्छना-सामाचारी है। ऐसा गुरु की आज्ञापूर्वक कार्य करना श्रेयस्कर और कर्म-निर्जरा का हेतू है। कोई भी कार्य गुरु से पूछकर करने पर वह श्रेयस्कर क्यों होता है ? जब किसी भी कार्य को करने में हमारे पास बुद्धि-वैभव है, फिर पूछने की क्या जरुरत है ? अपने मन से कोई काम क्यों नहीं कर सकते हैं ? इस पर हरिभद्र कहते हैं कि जहाँ यह विचार उत्पन्न होता है कि मेरे पास बुद्धि-बल है, फिर मुझे गुरु को पूछने की क्या आवश्यकता है, छोटे-छोटे कार्यों को पूछना मूर्खता है। यह विचार ही अहंकार का प्रतीक है और अहंकार कभी भी किसी के लिए श्रेयस्कर नहीं हो सकता। इसी कारण निर्देश दिया गया है कि सर्व कार्य गुरु से पूछकर ही करना चाहिए। गणधर गौतम स्वामी जैसे, जो चार ज्ञान से युक्त थे, वे भी कोई कार्य गुरु से पूछे बिना नहीं करते थे, अतः गुरु से पूछकर कार्य करना ही श्रेयस्कर माना गया है। इसका स्पष्टीकरण आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत पंचाशक की सत्ताइसवी, अट्ठाईसवीं एवं उन्तीसवीं गाथाओं में किया है। गुरु अथवा गुरु को मान्य स्थविर आदि वस्त्रप्रक्षालनादि कार्यों की विधि के ज्ञाता होते हैं। वस्त्रप्रक्षालनादि करते समय उनसे इसकी विधि जानने को मिलती है। वस्त्रप्रक्षालनादि की विधि सवयं जान लेने से उस विधि से कार्य करने पर जीवरक्षा होती है। जीवरक्षा होने से गुरु और जिन के प्रति विश्वसनीयता बढ़ती है। ऐसी विश्वसनीयता शुभभाव है। कार्य में प्रवृत्ति करने वाले का शुभभाव मंगलरूप गुरु से पूछकर कार्य करने से अच्छी तरह कार्यसिद्धि होने पर वर्तमान भव में पापकर्मों का नाश होता है और पुण्य का बन्ध होता है तथा आगामी भव में शुभगति और सद्गुरु का लाभ होता है। इससे वांछित कार्यों का प्रशस्त अनुबन्ध होता है और इसी प्रकार अन्य सभी कार्यो की सिद्धि होती है। गुरु या गुरु के समान स्थविर से पूछे बिना कार्य करने पर उपर्युक्त सभी लाभों के विपरीत परिणाम होता है, इसलिए साधु को प्रत्येक कार्य करने से पूर्व आपृच्छना, अर्थात् गुरु की अनुमति प्राप्त करना चाहिए। उन्मेष, निमेष, श्वासोच्छवास 440 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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