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________________ उत्तराध्ययन के अनुसार 'सव्व दुक्ख विभोक्खणिं', अर्थात् जो समस्त दुःखों से विमुक्त कराने वाली है, वह सामाचारी है।' ओघनियुक्ति-टीका के अनुसार, 'समाचरणं समाचारः। शिष्टाचरितः क्रियाकलापस्तस्य भावः'- सम्यक् आचरण समाचार कहलाता है, अर्थात् शिष्ट आचारित क्रियाकलाप, उसका भाव है- सामाचारी। ____ उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य बृहद्वृत्ति के अनुसार, मुनियों का पारस्परिक संघीय–व्यवहार सामाचारी है। __ आचार्य हरिभद्र ने बारहवें पंचाशक में साधुसमाचारीविधि का वर्णन किया है। साधुसमाचारी का अर्थ है- साध्वाचार के पालन-योग्य नियम। साधुसामाचारी को चवाल-सामाचारी भी कहते हैं, जो दस प्रकार की है। उस सामाचारी का वर्णन करने के पूर्व आचार्य हरिभद्र प्रथम गाथा में भगवान् महावीर को नमन करके साधुओं की इच्छाकार आदि दस सामाचारी के महान् अर्थ को संक्षेप में कहूंगा- इस प्रकार की अभिव्यक्ति की है। आचार्य हरिभद्र अपने इष्ट को नमस्कार करके साधु सामाचारीविधि का प्रतिपादन प्रारम्भ करते हुए प्रस्तुत पंचाशक की द्वितीय एवं तृतीय गाथाओं में दस सामाचारी के निम्न प्रकारों का उल्लेख करते हैं1. इच्छाकार 2. मिथ्याकार 3. तथाकार 4. आवश्यिकी 5. निषीधिका 6. आपृच्दना 7. प्रतिपृच्छना 8. छन्दना 9. निमन्त्रणा और 10. उपसम्पदा- समाचारी के ये दस प्रकार हैं। यहाँ समाचारी के इन दस भेदों का क्रमशः विवेचन किया जा रहा है। 1. इच्छाकारी-सामाचारी- आचार्य हरिभद्र ने प्रस्तुत पंचाशक की चतुर्थ, पंचम एवं षष्ठ गाथाओं में इच्छाकारी-सामाचारी का प्रतिपादन प्रस्तुत किया है। 'ओघ नियुक्तिटीका - *उत्तराध्ययन शान्त्याचार्य बृहवृत्ति - । पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 12/1 - पृ. - 201 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 12/23 - पृ. -201 पंचाशक-प्रकरण - आचार्य हरिभद्रसूरि- 12/4, 5, 6 -पृ. -202, 203 429 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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