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________________ के अभाव में उसे भूल बताने वाला कौन होगा ? गुरु, शिष्य की भूलों को देखता है, पर दोषदृष्टि से नहीं, अपितु भूलों को बताने या सुधारने के लिए उन भूलों को देखता है। शिष्य की भूल को देखने व बताने से गुरु एक सफल कुम्भकार के रूप में होते हैं, जो ऊपर से तो चोट मारते हैं और अन्दर उसे सहेजना चाहते हैं। गुरुकुलवास में ही क्षमादि गुण बीज-रूप से अंकुरित ही नहीं होते, अपितु विकसित भी होते हैं, क्योंकि क्षमादि गुणों के बीज को गुरु ही हितजल से सिंचन करते हैं, अन्य नहीं, अतः गुरुकुलवास (गुरुसान्निध्य) में ही क्षमादि गुणों की वृद्धि होती है एवं धर्मरूपी फल की भी प्राप्ति होती है, अर्थात् गुरुकुलवास में ही कर्म-निर्जरा होती है और यही निर्जरा ही तो फल है। जैसे वृक्ष से फल का अलग होना भी उपलब्धि है, वैसे ही आत्मा से कर्म का अलग होना उपलब्धि है। यह उपलब्धि गुरुकुलवास में ही है। ___ वृक्ष, पौध, माली की देखरेख में ही सुरक्षित रहते हैं एवं विकसित होते हैं, अन्यथा उनका तहस-नहस होना निश्चित है, वैसे ही गुरु की देखरेख में शिष्य के गुणों का विकास होता है, अन्यथा विनाश होता है, क्योंकि गुरुकुल के अभाव में शिष्य का अनर्थ अवश्य है। सूत्रकृतांग के अनुसार- गुरुकुलवास करने वाले साधक का सर्वांगीण जीवन-निर्माण एवं विकास तभी हो सकता है, जब वह गुरुकुलवास में अपनी प्रत्येक प्रवृत्ति एवं चर्या को गुरु के अनुशासन में करे। अप्रमत्त होकर अपनी भूल सुधारता हुआ बाह्य-आभ्यन्तर तप, संयम तथा क्षमा, मार्दव आदि श्रमणधर्म का अभ्यास करे। गुरुकुलवासकालीन शिक्षा में अनुशासन, प्रशिक्षण, उपदेश, मार्गदर्शन, अध्ययन, अनुशीलन आदि प्रक्रियाओं का समावेश है।' पंचाशक प्रकरण में साधुसामाचारीविधिसामाचारी का अर्थ- . परस्पर साधुओं के साधुओं का आचार का परिपालन सामाचारी है। सूत्रकृतांग - गुरुकुलवासी द्वारा शिक्षा-ग्रहणविधि-585 -पृ. -431, 434 उत्तराध्ययन - म. महावीर-26/1/2 428 Jain Education International For Personal & Private Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003972
Book TitlePanchashak Prakaran me Pratipadit Jain Achar aur Vidhi Vidhan
Original Sutra AuthorN/A
AuthorKanakprabhashreeji
PublisherKanakprabhashreeji
Publication Year2013
Total Pages683
LanguageHindi
ClassificationBook_Devnagari, Ritual, & Vidhi
File Size10 MB
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